सुकवि स्व. मोहन राय स्मृति पुरस्कार डॉ. आज़म को प्रदान किया जायेगा

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अग्रणी साहित्यिक प्रकाशन संस्था शिवना प्रकाशन द्वारा स्व. मोहन राय की स्मृति में  दिया जाने वाला सुकवि स्व. मोहन राय स्मृति पुरस्कार सीहोर के सुप्रसिध्द शायर तथा कवि डॉ.  आज़म को दिया जायेगा । यह पुरस्कार शिवना प्रकाशन तथा मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में  आगामी आठ मई को होने वाले अखिल भारतीय मुशायरे में प्रदान किया जायेगा ।
सुकवि स्व. मोहन राय स्मृति पुरस्कार समिति के समन्वयक पुरुषोत्तम कुइया ने जानकारी देते हुए बताया कि पुरस्कार हेतु शिवना प्रकाशन ने तीन सदस्यीय समिति का गठन शिक्षाविद डॉ. पुष्पा दुबे की अध्यक्षता में किया था जिसमें साहित्यकार द्वय रमेश हठीला तथा पंकज सुबीर सम्मिलित थे । उक्त समिति की विशेष बैठक सोमवार शाम डॉ. पुष्पा दुबे के निवास पर संपन्न हुई । बैठक में कई नामों पर विचार करने के बाद समिति ने सर्वसम्मति से हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषाओं पर समान अधिकार रखने वाले युवा कवि तथा शायर डॉ.  आज़म को सुकवि स्व. मोहन राय स्मृति पुरस्कार देने का निर्णय लिया । दिनाँक आठ मई को रात्रि आठ बजे स्थानीय कुइया श्री गार्डन पर आयोजित होने वाले अखिल भारतीय मुशायरे में डॉ. आज़म को ये पुरस्कार प्रदान किया जायेगा । कार्यक्रम दो चरणों में संपन्न होगा, प्रथम खंड में शिवना प्रकाशन का पुस्तक विमोचन तथा पुरस्कार समारोह एवं दूसरे खंड में अखिल भारतीय मुशायरा होगा । प्रथम खंड में मुख्य अतिथि के रूप में विधायक श्री रमेश सक्सेना उपस्थित रहेंगें जबकि विशिष्ट अतिथियों के रूप में मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के अध्यक्ष तथा सुविख्यात शायर पद्मश्री डा. बशीर बद्र, पद्मश्री श्री बेकल उत्साही, डॉ. राहत इन्दौरी, तथा मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव श्रीमती नुसरत मेहदी उपस्थित रहेंगीं । श्री कुइया ने जानकारी देते हुए बताया कि डॉ. आज़म वर्तमान समय में हिंदी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में लिखी जाने वाली ग़ज़लों में एक चर्चित हस्ताक्षर हैं । वे दिल्ली के पुस्तक मेले सहित देश भर के मंचों पर काव्य पाठ कर चुके हैं तथा कई स्थानों पर सम्मानित हो चुके हैं । उनकी ग़ज़लें देश भर की साहित्यिक पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं । दिल्ली से प्रकाशित होने वाली हिंदी ग़ज़लों पर केन्द्रित महत्वपूर्ण पुस्तक ग़ज़ल दुष्यंत के बाद में उनकी ग़ज़लों को लगातार दो वर्षों से सम्मिलित किया जा रहा है । श्री कुइया ने बताया कि पुरस्कार के अंतर्गत शाल, श्रीफल, स्मृति चिन्ह तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जायेगा । 

सुकवि मोहन राय की स्मृति में शिवना प्रकाशन मप्र उर्दू अकादमी के सहयोग से आयोजित करेगा अखिल भारतीय मुशायरा (पद्मश्री डा. बशीर बद्र, पद्मश्री बेकल उत्साही, डा. राहत इन्दौरी शिरकत करेंगें ) ।


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सीहोर के सुप्रसिध्द कवि स्व. मोहन राय की स्मृति में जिले की अग्रणी साहित्यिक प्रकाशन संस्था शिवना प्रकाशन तथा मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में एक अखिल भारतीय मुशायरे का आयोजन आगामी आठ मई को किया जा रहा है । इस आयोजन में देश भर के दिग्गज शायरों के आने की स्वीकृति मिल चुकी है ।

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कार्यक्रम संयोजक राजकुमार गुप्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि सुकवि मोहन राय की स्मृति में 8 मई शनिवार को होने वाले इस भव्य अखिल भारतीय मुशायरे में मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के अध्यक्ष तथा सुविख्यात शायर पद्मश्री डा. बशीर बद्र, पद्मश्री श्री बेकल उत्साही (बलरामपुर), डॉ. राहत इन्दौरी (इन्दौर), मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव श्रीमती नुसरत मेहदी ( भोपाल), शकील जमाली (नई दिल्ली), खुरशीद हैदर (मुजंफ्फर नगर), अख्तर ग्वालियरी (उज्‍जैन), शाकिर रजा (इन्दौर), सिकन्दर हयात गड़बड़ (रुड़की), अतहर (लटेरी), सुलेमान मजाज (कुरवाई), जिया राना (उज्‍जैन), राना जेबा (ग्वालियर), फारुक अन्जुम (भोपाल), काजी मलिक नवेद (भोपाल),  आदि की स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है ।

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श्री गुप्ता ने जानकारी देते हुए बताया कि शिवना प्रकाशन द्वारा इस कार्यक्रम में नई प्रकाशित पुस्तकों का विमोचन भी किया जायेगा । इन पुस्तकों में हिंदी की  शीर्ष कहानीकार डॉ. सुधा ओम ढींगरा की पुस्तक धूप से रूठी चाँदनी, मोनिका हठीला की पुस्तक एक खुश्बू टहलती रही, गुड़गांव की कवयित्री सीमा गुप्ता की पुस्तक विरह के रंग तथा पोखरन राजस्थान के ग़ज़लकार मेजर संजय चतुर्वेदी की पुस्तक चाँद पर चाँदनी नहीं होती का विमोचन किया जायेगा । इस अवसर पर शिवना प्रकाशन द्वारा स्व. मोहन राय की स्मृति में दिया जाने वाला सुकवि मोहन राय स्मृति पुरस्कार भी जिले के चयनित साहित्यकार को प्रदान किया जायेगा । पुरस्कार के लिये डॉ. पुष्पा दुबे की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति बनाई गई है जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार सुकवि रमेश हठीला तथा कहानीकार पंकज सुबीर को शामिल किया गया है । समिति शीघ्र ही अपनी बैठक कर पुरस्कार के नामों पर विचार करेगी । श्री गुप्ता ने बताया कि सुकवि मोहन राय सीहोर जिले के मूर्ध्दन्य कवि थे उनकी दो पुस्तकें गुलमोहर के तले तथा झील का पानी शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गईं थी ।  शिवना द्वारा उनकी स्मृति में हर वर्ष आयोजन किया जाता है । शिवना प्रकाशन तथा मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के संयुक्त आयोजन को लेकर व्यापक स्तर पर तैयारियाँ प्रारंभ कर दी गई हैं तथा शीघ्र ही इस अखिल भारतीय मुशायरे को लेकर आयोजन समिति की घोषणा कर दी जायेगी ।

आज शिवना प्रकाशन के वरिष्‍ठ संरक्षक आदरणीय दादा भाई महावीर शर्मा जी का जन्‍मदिन है उनको प्रकाशन की पूरी टीम की तरफ से शुभकामनाएं ।

आदरणीय दादा भाई महावीर शर्मा जी का आज जन्‍मदिवस है । दादा भाई से जब से जुड़ा हूं तबसे ही लगता है कि उनसे तो बरसों पुरानी पहचान है । शिवना प्रकाशन को वे अपना ही मान कर चलते हैं । उनके ब्‍लाग पर शिवना की सारी जानकारियां उन्‍होंने सहेज कर लगाई हुई हैं । उनका प्रेम और नेह हर किसी को सहज रूप से प्राप्‍त होता है । उनका जन्‍मदिन शिवना के लिये खास मौका है ।

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दादा भाई के चित्र दीपक चौरसिया मशाल के ब्‍लाग से साभार

कई बार सोचता हूं कि यदि दादा भाई जैसे घने और छायादार वृक्षों की छांव हमें न मिली होती तो कितना नीरस होता हम सब का जीवन । एक बात जो मुझे उनमें सबसे अधिक पसंद आती है वो है उनकी लगन । वे इस उम्र में भी साहित्‍य के प्रति इतने समर्पित हैं कि कभी कभी तो रश्‍क होने लगता है उनसे । रश्‍क इस बात से कि वे इस उम्र में भी सक्रियता के साथ काम कर रहे हैं और एक हम हैं कि ज़रा काम कर लें तो दस दिन तक बहाने बनाते हैं कि नहीं अब कुछ दिन का अवकाश चाहिये ।

दादा भाई का स्‍वास्‍थ्‍य पिछले दिनों ठीक नहीं रहा डाक्‍टरों ने उनको आराम की सलाह दी लेकिन वे फिर भी काम में लगे रहते हैं ।

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जन्‍मदिन की मंगल कामनाएं

और दादाभाई का लिखा ये गीत जो मुझे बहुत पसंद है

लिख चुके प्‍यार के गीत बहुत कवि अब धरती के गान लिखो।
लिख चुके मनुज की हार बहुत अब तुम उस का अभियान लिखो ।।

तू तो सृष्‍टा है रे पगले कीचड़ में कमल उगाता है,
भूखी नंगी भावना मनुज की भाषा में भर जाता है ।
तेरी हुंकारों से टूटे शत्‌ शत्‌ गगनांचल के तारे,
छिः तुम्‍हें दासता भाई है चांदी के जूते से हारे।
छोड़ो रम्‍भा का नृत्‍य सखे, अब शंकर का विषपान लिखो।।

उभरे वक्षस्‍थल मदिर नयन, लिख चुके पगों की मधुर चाल,
कदली जांघें चुभते कटाक्ष, अधरों की आभा लाल लाल।
अब धंसी आँख उभरी हड्‍डी, गा दो शिशु की भूखी वाणी ,
माता के सूखे वक्ष, नग्‍न भगिनी की काया कल्‍याणी ।
बस बहुत पायलें झनक चुकीं, साथी भैरव आह्‍वान लिखो।।

मत भूल तेरी इस वाणी में, भावी की घिरती आशा है,
जलधर, झर झर बरसा अमृत युग युग से मानव प्‍यासा है।
कर दे इंगित भर दे साहस, हिल उठे रुद्र का सिहांसन ,
भेद-भाव हो नष्‍ट-भ्रष्‍ट, हो सम्‍यक समता का शासन।
लिख चुके जाति-हित व्‍यक्‍ति स्वार्थ, कवि आज निधन का मान लिखो।।

 

एक बार फिर से दादा भाई का जन्‍मदिन की मंगल कामनाएं ।

रात के आसमान में बिखरती हुई चांदनी : मोनिका हठीला के काव्‍य संग्रह एक खुश्‍बू टहलती रही पर सुप्रसिद्ध कवि श्री राकेश खंडेलवाल जी का आलेख ।

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प्रकाशक : शिवना प्रकाशन, आइएसबीएन नंबर 978-81-909734-2-7 मूल्‍य 250 रुपये

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आलेख - श्री राकेश खंडेलवाल जी                                            कवयित्री मोनिका हठीला

रात के आसमान में बिखरती हुई चाँदनी को पीकर कुछ सितारे लड़खड़ाते हुए पिघलते रहे रात भर। कुछ पिघले हुए सितारों की बूँदें टपकती हुई रजनीगन्धा के पत्तों पर आ गिरीं। भोर की पहली किरण ने जब उनको सहलाया तो निशिगन्धा के फूलों की साँसों को चूम कर, किरण के सोनहलेपन को अपने आप में समेट कर वे हवा की एक झालरी की उँगलियाँ पकड़े हुए चल पड़ीं चहल कदमियाँ करती हुईं।
चलते चलते हवाओं के साथ बहती हुई इन खुशबुओं की तरंगों को सीहोर का रास्ता मिल गया और वहाँ के पथ पर चलते हुए रास्ते इनको स्वत: ही ले गये मोनिका हठीला की कलम की नोक पर। उस कलम के मोहक स्पर्श से सँवर कर ये खुशबुएँ फिर निकल पड़ीं टहलती हुई और फिर विश्राम का नाम ही नहीं लिया और अब भी यह खुशबू टहलते हुए चल रही है।
यद्यपि मुझे मोनिका से मिलने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ परन्तु एक कवि या कवयित्री की पहचान तो उसके शब्दों से ही होती है। भावनाएँ नयी नहीं होतीं आदिकाल से मानव मन की संवेदनाएँ और भावनाएँ बदली नहीं हैं और न ही बदलेंगी। बदलता है तो केवल उन्हें शब्दों में पिरोने का कौशल, लक्षणा और व्यंजना का श्रंगार और अपनी बात को नये ढंग से कहने की कला।
मोनिका हठीला की रचनाओं में यह कौशल भली भाँति उभर कर आया है। सहज सीधे साधे शब्दों में बिना किसी आडंबर के अपनी बात कह पाने का जो हुनर उनकी रचनाओं में दृष्टव्य है वहाँ तक पहुँचने के लिये कड़ी साधना और लगन की आवश्यकता होती है। पारिवारिक जीवन के दायित्व में रहते हुए इस कौशल को खूबसूरती से निभाये रखना मोनिका की रचनाओं में दृष्टिगोचर होता है । अपने लेखन का जिक्र करते हुए मोनिका कहती हैं-
कलियों के मधुबन से
गीतों के छन्द चुने
सिन्दूरी क्षितिजों पर
स्वप्निल अनुबन्ध बुने
घिर आई रंग भरी शाम
एक गीत और तेरे नाम
तो एक और और एक और की श्रंखला बढ़ती रहती है और कभी विश्रान्ति के पल तलाश नहीं करती।
मन ऑंगन में करे बसेरा सुधियों का सन्यासी
मौसम का बंजारा गाये गीत तुम्हारे नाम
और तुम्हारे नाम लिखते लिखते जब यह कलम अपने आस पास देखती है तो व्यव्स्था की अस्तव्यस्तता और टूटते हुए सपनों के ढेरों से जुड़े हुए राजनीति से अछूती नहीं रह पाती
वे लिखती हैं-
सारे कौए ओढ़ के चादर आज बन गये बगुले..
अंधियारे ने रहन रख लिया आज उजाला है.
तो कवि हृदय की पीड़ा का आक्रोश सामने आ जाता है और अपनी आवाज़ में और आवाजों को सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित करता प्रतीत होता है।
विरह के पलों के चित्रण में मोनिका ने अपनी अनूठी अभिव्यक्ति दी है-
तोता चुप, मैना उदास है, गुमसुम सोनचिरैया
कोयल भूल गई अपना सुर, भँवरा लगे ततैया
टूट गया पागल मीरा की साँसों का इकतारा
तेरे बिना मीत सूना है घर ऑंगन चौबारा
या फिर जब आंचलिक भाषा में परम्परागत चली आ रही गाथाओं और किंवदन्तियों को अपने भावों के साथ जोड़कर वे खूबसूरती से प्रस्तुत करती हैं तो उनकी कलम को बरबस ही नमन करना होता है-
विधना तू बावरो किने दी थारे कलम
विरहा लिख्यौ भाग म्हारे, आई न थारे सरम
हो पंख देता थे म्हारे उड़के आती द्वारे
मोनिका न केवल गीतों को अपने शब्दों से सजाती रही हैं बल्कि ग़ज़लों को भी उन्होंने नये लिबास पहनाये हैं। छोटी बहर हो या लम्बी, मोनिका ने अपनी बात अपने  ही अंदाज़ में बयाँ की हैं। उनकी ग़ज़लों के चन्द अशआर उध्दृत किये बिना यह जिक्र अधूरा रह जायेगा। कुछ शेर खास तौर से
सुबह रोती मिली चाँदनी
रात जिससे सुहानी हुई
शबरी के राम एक न एक दिन तो आयेंगे
पलकों को पाँवड़ों सा बिछाये हुए हैं हम

लिल्लाह ऐसे देख कर मैला न कीजिये
बेदाग चाँदनी में नहाये हुए हैं हम

जिसने तुम्हारी राह में काँटे बिछाये थे
वो ही तुम्हारी ऑंख का तारा है इन दिनों

आप के हुक्म पर होंठ सी तो लिये
गीत पायल सुनाये तो मैं क्या करूँ
और
मैने जाना जबसे तुमको
खुद से ही अंजान हो गई.
मैने केवल कुछ ही अशआर इसलिये चुने कि अगर पसन्द के सभी शेरों का जिक्र यहाँ करता तो कई ग़ज़लें पूरी की पूरी यहाँ लिखना पड़ जातीं। गीत, ग़ज़लों के साथ साथ मुक्तकों में भी मोनिका  ने अपनी शैली को एक अलग पहचान दी है। मोनिका के मुक्तकों ने जहाँ भारत के कवि सम्मेलनों के हर मंच पर अपनी छाप छोड़ी है वहीं मूर्धन्य साहित्यकारों और कवियों से भी वाहवाही बटोरी है। उनका हर मुक्तक एक दूसरे से बढ़ कर है।
मुझे अत्यंत हर्ष और गर्व का अनुभव हो रहा है कि मोनिका के गीत, ग़ज़लों और मुक्तकों को पढ़ने का प्रथम अवसर मुझे प्राप्त हुआ और उनकी रचनाओं के सन्दर्भ में मैं कुछ कह सका।
खुशबू टहलती रही के पश्चात आगामी संकलनों की सभी काव्य प्रेमियों को प्रतीक्षा रहेगी ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। मोनिका को लेखन के नये आयाम छूने की शुभकामनाओं के साथ आशीष ।
राकेश खंडेलवाल
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सिल्वर स्प्रिंग , मैरीलेंड
( यू. एस. ए )
301-929-0508