मोनिका ने कविता की गरिमा को बरकरार रखा है -डॉ. कुमार विश्वास

geet-print23  मोनिका के साथ मंचों पर खूब पढ़ने का मौका मिला है । जब बात आई कि  मोनिका के काव्य संग्रह के लिये कुछ लिखना है तो सोच में पड़ गया कि क्या लिखूँ । कवि सम्मेलन के मंचों पर जब भी भेंट हुई तो उसके सौम्य व्यवहार ने हमेशा प्रभावित किया, तथा हमेशा ऐसा लगा कि अपनी छोटी बहन से ही मिल रहा हूँ । मंचों पर इन दिनों जब कविता कम चुटकुले यादा हो रहे हैं, वैसे में कवयित्रियों के लिये काव्य पाठ बड़ा ही दुरूह कार्य हो गया है । ऐसे में मोनिका ने न केवल अपनी बल्कि कविता की गरिमा को भी बरकरार रखा और हमेशा ही अपने गीतों से श्रोताओं के बीच एक अलग छाप छोड़ी है । मोनिका के गीतों में प्रतीक और शब्द बहुत ही सुंदरता से प्रयुक्त होते हैं, जैसे एक गीत है- कलियों के मधुबन से गीतों के छन्द चुने, सिन्दूरी क्षितिजों से सपनों के तार बुने, सपनों का तार तार वृन्दावन धाम, एक गीत और तेरे नाम।  इस गीत में कोमलता के साथ शब्दों को बाँधा गया है । इतनी कोमलता के साथ, कि छंद से घुँघरुओं की आवाज़ आती हुई प्रतीत होती है । श्रंगार के गीतों में शब्द चयन ठीक नहीं किये गये हैं तो श्रंगार गीत का आनंद कम हो जाता है । यहाँ पर भावों को अभिव्यक्त करने के लिये उतने ही कोमल शब्दों की आवश्यकता होती है जितनी कोमल भावनाएँ हैं । मोनिका के गीतों में भावों और शब्दों में ये तालमेल साफ दिखाई देता है-प्यार वो दिया कि दीया राह का हुआ, हर स्वपन सुगंधमयी चाह सा हुआ, मन में है हिलोर और होंठ पर दुआ, हर स्वपन को कृष्ण सा दुलारते रहे, और हम खड़े-खडे पुकारते रहे। गीतों के स्वर्ण युग की याद दिलाने वाले शब्दों को हम मोनिका के गीतों में पाते हैं । मोनिका ने मुझे हमेशा हमेशा बड़े भाई का सम्मान दिया है उसे लिहाज़ से यही कह सकता हूँ कि मेरी अनुजा का ये प्रथम काव्य संग्रह आपके हाथों में है, उसे आशीर्वाद दें । मेरी शुभकामनाएँ ।