शिवना साहित्यिकी का जनवरी-मार्च 2018 अंक

मित्रों, संरक्षक एवं सलाहकार संपादक, सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra , प्रबंध संपादक नीरज गोस्वामी Neeraj Goswamy , संपादक पंकज सुबीर Pankaj Subeerr कार्यकारी संपादक, शहरयार Shaharyar , सह संपादक पारुल सिंह Parul Singh के संपादन में शिवना साहित्यिकी का जनवरी-मार्च 2018 अंक अब ऑनलाइन उपलब्धl है। इस अंक में शामिल है- आवरण कविता, कहाँ गई चिड़िया...? / लालित्य ललित Lalitya Lalit , संपादकीय, शहरयार Shaharyar । व्यंग्य चित्र, काजल कुमार Kajal Kumar । आलोचना, नई सदी के हिंदी उपन्यास और किसान आत्महत्याएँ, डॉ. सचिन गपाट Sachin Gapat। संस्मरण आख्यान, सुशील सिद्धार्थ Sushil Siddharth Gyan Chaturvedi । विमर्श- गोदान के पहले, जीवन सिंह ठाकुर Jeevansingh Thakurr । संस्मरण- अविस्मरणीय कुँवर जी, सरिता प्रशान्त पाण्डेय । फिल्म समीक्षा के बहाने- मुज़फ्फरनगर, वीरेन्द्र जैन Virendra Jain । पेपर से पर्दे तक..., कृष्णकांत पण्ड्या Krishna Kant Pandya । पुस्तक-आलोचना- चौबीस किलो का भूत, अतुल वैभव Atul Vaibhav Singh Bharat Prasad । नई पुस्तक- हसीनाबाद / गीताश्री Geeta Shree , गूदड़ बस्ती / प्रज्ञा Pragya Rohini । समीक्षा- उर्मिला शिरीष Urmila Shirish , चौपड़े की चुड़ैलें, पंकज सुबीर, अशोक अंजुम Ashok Anjum Ashok Anjum , सच कुछ और था / सुधा ओम ढींगरा, मुकेश दुबे Mukesh Dubey , बंद मुट्ठी / डॉ. हंसा दीप @Dharm Jain , राम रतन अवस्थी Ram Ratan Awasthii , बातों वाली गली / वंदना अवस्थी दुबे, डॉ. ऋतु भनोट Bhanot Ritu , जोखिम भरा समय है / माधव कौशिक Madhav Kaushik , प्रतीक श्री अनुराग @pratik shri anurag / संतगिरी / मनोज मोक्षेंद्र Mokshendra Manoj । आवरण चित्र पल्लवी त्रिवेदी Pallavi Trivedi , डिज़ायनिंग सनी गोस्वामी Sunny Goswami । आपकी प्रतिक्रियाओं का संपादक मंडल को इंतज़ार रहेगा। पत्रिका का प्रिंट संस्करण भी समय पर आपके हाथों में होगा। ऑन लाइन पढ़ें-
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शिवना साहित्यिकी का अक्टूबर-दिसम्बर 2017 अंक

मित्रों, संरक्षक एवं सलाहकार संपादक, सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra , प्रबंध संपादक नीरज गोस्वामी Neeraj Goswamy , संपादक पंकज सुबीर Pankaj Subeer कार्यकारी संपादक, शहरयार Shaharyar , सह संपादक पारुल सिंह Parul Singh के संपादन में शिवना साहित्यिकी का अक्टूबर-दिसम्बर 2017 अंक अब ऑनलाइन उपलब्धl है। इस अंक में शामिल है- आवरण कविता जीवन भर का उजाला / सुरजन परोही , संपादकीय / शहरयार, व्यंग्य चित्र / काजल कुमार Kajal Kumar , आलोचना आलोचना में संप्रेषण का प्रश्न, पंकज पराशर Pankaj Parashar , संस्मरण आख्यान होता है शबोरोज़ तमाशा मिरे आगे, सुशील सिद्धार्थ Sushil Siddharth , विमर्श स्वातंत्र्योत्तर आदिवासी काव्य में समाज और संस्कृति / रजनी मल्होत्रा Rajni Nayyar Malhotra , संस्मरण इन्डियन फ़िल्में और लड़कियाँ सबूहा ख़ान Zeba Alavi , फिल्म समीक्षा के बहाने लिपिस्टिक अन्डर माई बुरका, न्यूटन वीरेन्द्र जैन Virendra Jain , पुस्तक-आलोचना महेश दर्पण Mahesh Darpan / चुनी हुई कहानियाँ : सूर्यबाला Suryabala Lal / सूर्यबाला, नई पुस्तक कल्चर वल्चर / ममता कालिया Mamta Kalia , प्रकाश कांत Prakash Kant / अपने हिस्से का आकाश, खिड़की खुलने के बाद / @नीलेश रघुवंशी Neelesh Raghuwanshi , असंभव से संभव की ओर / तरुण पिथोड़े Tarun Pithode रंगमंच प्रज्ञा Pragya Rohini / प्रेम जनमेजय के दो व्यंग्य नाटक / डॉ. प्रेम जनमेजय, पुस्तक चर्चा फ़ारुक़ आफ़रीदी Farooq Afridy Jaipur / विलायती राम पांडेय / लालित्य ललित Lalitya Lalit , @महावीर रवांल्टा / पथ का चुनाव / कांता राय Kanta Roy , डॉ. रेशमी पांडा मुखर्जी Reshmi Panda Mukherjee / अस्थायी चार दीवारी / वाणी दवे @vani dave , समीक्षा डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी Gyan Chaturvedi / सच कुछ और था / सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra , शैलेन्द्र अस्थाना Shailendra Asthana / विघटन / जयनंदन Jai Nandan , प्रदीप कान्त / सजदे में आकाश / कुमार विनोद @kumar vinod , शशि कुमार पांडेय @shashi kumar pandey / फ़ेक एनकाउंटर / डॉ. मुकेश कुमार Mukesh Kumar , सुरजीत सिंह @surjeet singh / बुरी औरत हूँ मैं / वंदना गुप्ता Vandana Gupta , सौरभ पाण्डेय Saurabh Pandey / थोड़ा लिखा समझना ज़्यादा / जय चक्रवर्ती Jai Chakrawarti , पारुल सिंह Parul Singh / चौपड़े की चुड़ैलें / पंकज सुबीर Pankaj Subeer , फ़िल्म-आलोचना पार्टीशन : 1947 - तथ्यात्मक भ्रांतियों के बीच मानवीय संवेदनशीलता प्रमोद मीणा Pramod Meena । आवरण चित्र राजेंद्र शर्मा बब्बल गुरु Babbal Guru डिज़ायनिंग सनी गोस्वामी Sunny Goswami ,
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शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित डॉ. मुकेश कुमार Mukesh Kumar के संग्रह फ़ेक एनकाउंटर का प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में हुआ विमोचन

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23 सितंबर, नई दिल्ली। कोई भी सर्व सत्तावादी जिस चीज़ से सबसे ज़्यादा डरता है वह है व्यंग्य। वह व्यंग्य को बर्दाश्त नहीं कर पाता यहां तक कि कार्टून को बर्दाश्त नहीं कर पाता। ऐसे में व्यंग्य लिखना भारी जोखिम का काम है और वह मुकेश कुमार ने किया है। ये उनका दुस्साहस है कि उन्होंने फेक एनकाउंटर लिखा। ये विचार जाने-माने कथाकार एवं कवि उदयप्रकाश UDAY Prakash ने डॉ. मुकेश कुमार की किताब फेक एनकाउंटर के लोकार्पण के अवसर पर कही। लोकार्पण दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सभागार में हुआ। कार्यक्रम में साहित्य एवं पत्रकारिता के अलावा अन्य क्षेत्रों के सौ से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उदयप्रकाश ने कहा, “ मैंने इस किताब को पढ़ा है और मैं ये कह सकता हूँ कि ये एक ऐसी किताब है जिसे शुरू करने के बाद रखना मुश्किल हो जाता है। मुकेश कुमार ने कभी भी सामाजिक सरोकारों को छोड़ा नहीं और वह प्रतिबद्धता फ़ेक एनकाउंटर में भी देखी जा सकती है।“
उदयप्रकाश ने किताब की खूबियों पर रोशनी डालते हुए कहा कि सभी फ़ेक एनकाउंटर बहुत चित्रात्मक हैं, विजुअल हैं और इसका नाट्य रूपांतर करके कोई टेलीविज़न शो किया जाए तो वह चैनलों पर चलने वाले कई व्यंग्यात्मक कार्यक्रमों से बेहतर होगा, वह अद्भुत होगा और उसे बनाया जाना चाहिए।
इससे पहले कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ओम थानवी Om Thanvi ने मौजूदा समय की चुनौतियों, बढ़ती असहिष्णुता सत्ताधारियों के चरित्र का ज़िक्र करते हुए कहा कि मुकेश जी के सौम्य व्यक्तित्व की झलक इस किताब की भाषा और उनके कहने के अंदाज़ में भी है। शोर-शराबे के इस दौर में मुकेश ऐसा कर रहे हैं ये अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि फ़ेक एनकांउटर में काल्पनिक इंटरव्यू के ज़रिए उन्होंने मौजूदा दौर का खाक़ा खींचा है और कहना होगा कि उनकी रेंज बहुत बड़ी है। उन्होंने ओबामा से लेकर मोदी तक सबके साथ एनकाउंटर किया है और साथ ही साथ पत्रकारों की स्थिति को भी उजागर किया है। थानवी ने कहा कि ये बहुत ख़तरनाक़ दौर है और इस किताब के बहाने उस दौर की भी चर्चा की जानी चाहिए, उसे भी जाँचा-परखा जाना चाहिए।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता की हैसियत से हिस्सा ले रहे वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक प्रियदर्शन ने कहा कि वे फ़ेक एनकाउंटर लगातार पढ़ते रहे हैं और उसे एक किताब के रूप में पढ़ना उनके लिए एक नया अनुभव था। उन्होंने कहा कि किताब में संकलित फर्ज़ी एनकाउंटर झूठ को बेनकाब करते हैं। मुकेश जी ने व्यंग्य के शिल्प को बहुत करीने से साधा है और वह पारंपरिक शिल्प नहीं है। हम लोग व्यंग्य की जिस परंपरा की बात करते हैं ये उनसे हटकर हैं। वे पत्रकारिता के भीतर इंटरव्यू के मार्फ़त उन स्थितियों को ऐसे रख देते हैं जो अपने ढंग से विडंबनामूलक हैं और हम उन्हें व्यंग्य की तरह पढ़ने लगते हैं। मुझे अंदेशा था कि कहीं पूरी की पूरी किताब उसी वैचारिक लाइन पर न हो जिसके लिए लेखकों को बदनाम कर दिया गया है। मैंने पाया कि ये शिथिलता बिल्कुल भी नहीं है और इसमें सारे पक्ष आ गए हैं। ये शिकायत कोई नहीं कर सकता कि ये किताब किसी एक विचारधारा की ओर झुकी हुई है।
प्रियदर्शन ने किताब की विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि मुकेशजी शिल्प के स्तर पर भी प्रयोग कर रहे हैं.। उन्होंने कार्टून और कैरीकेचर की विधा का भी इसमें इस्तेमाल किया है। वे अपने पर भी चुटकी लेने से परहेज़ नहीं करते। उन्होंने कहा कि किताब पर तात्कालिकता बहुत हावी है और इसलिए मैं पाता हूं कि दस-पंद्रह साल बाद कोई पढ़ेगा तो उसे आज के चरित्रों के बारे में कितना पता होगा। मुकेश जी को तात्कालिकता से आगे जाने की ज़रूरत है। इस सबके बावजूद इसे लगातार पढ़ने की होती है और इसे कहीं से भी पढ़ा जा सकता है।
किताब के लेखक डॉ. मुकेश कुमार ने कहा कि हम एक फ़ेक समय में रह रहे हैं। इस समय मे सब कुछ फ़ेक है। मीडिया तो फ़ेक है ही, फ़ेक राष्ट्रवाद है, फ़ेक दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक प्रेम है। उन्होंने कहा कि नेता राजनीति फ़ेक है और इस वजह से लोकतंत्र भी फ़ेक लगने लगा है। इस फ़ेक को काटने के लिए उन्होंने इन फर्जी एनकाउंटर का सहारा लिया और उन्हें खुशी है कि इन्हें देश भर में खूब पढ़ा और सराहा गया।
सुपरिचित कवयित्री एवं शिवना प्रकाशन की निदेशक पारुल सिंह Parul Singh ने किताब का परिचय देते हुए कहा कि फेक एनकाउंटर अनूठा व्यंग्य संग्रह है और व्यंग्य पत्रकारिता की पहली पुस्तक है। ये व्यंग्य संग्रह पहले बनाए गए दायरों को तोड़कर आगे निकल जाता है। मुकेश कुमार ने बहुत सारे नए प्रयोग किए हैं और इसलिए भी साहित्य एवं पत्रकारिता जगत में इसकी चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने मुकेश कुमार इसके लिए आभार व्यक्त किया कि उन्होंने ये व्यंग्य संग्रह प्रकाशन के लिए शिवना प्रकाशन को दिया।
लोकार्पण समारोह की एक बड़ी विशेषता जानी मानी टीवी ऐंकर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी Arfa Khanum का संचालन रहा। अपने टीवी कार्यक्रमों की ही तरहअपने सधे हुए संचालन के ज़रिए उन्होंने किताब को मौजूदा संदर्भों, समस्याओं और विवादों से जोड़ते हुए बातचीत को सार्थक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने किताब के कुछ अंश पढ़े और अपनी तीखी एवं चुटीली टिप्पणियों से मीडिया के चरित्र को उजागर किया भी किया।
आरफ़ा ने मुकेश कुमार की ऐंकरिंग की चर्चा करते हुए कहा कि मैं उन्हें बतौर ऐंकर अच्छे से जानती है वह आतंकित कर देने वाली ऐंकरिंग के विपरीत सौम्यता लिए हुए है। यही बात उनकी इस किताब में दिखती है। उन्होंने किताब के कुछ अंशों का पाठ भी किया।

शिवना साहित्यिकी का जुलाई-सितम्बर 2017 अंक

मित्रों, संरक्षक तथा सलाहकार संपादक सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra प्रबंध संपादक नीरज गोस्वामी Neeraj Goswamy , संपादक पंकज सुबीर, कार्यकारी संपादक- शहरयार Shaharyar तथा सह संपादक पारुल सिंह Parul Singh के संपादन में शिवना साहित्यिकी का जुलाई-सितम्बर 2017 अंक अब ऑनलाइन उपलब्धl है। इस अंक में शामिल है संपादकीय, शहरयार Shaharyar । व्यंग्य चित्र -काजल कुमार Kajal Kumar । आवरण कविता - शमशेर बहादुर सिंह, आवरण चित्र के बारे में....- विस्मय / पल्लवी त्रिवेदी Pallavi Trivedi , उपन्यास अंश- पागलखाना / डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी Gyan Chaturvedi , संस्मरण आख्यान- होता है शबोरोज़ तमाशा मिरे आगे, सुशील सिद्धार्थ Sushil Siddharth , कथा-एकाग्र- नीलाक्षी फुकन Nilakshi Phukan कहानी विखंडन Ajay Navaria , अनीता सक्सेना Anita Saxena कहानी Mehrunnisa Parvez , पुस्तक चर्चा- हँसी की चीखें / कांता राय Kanta Roy Santosh Supekar , एक वह कोना / गोविंद भारद्वाज Govind Bhardwaj Govind Sharma , पहाड़ पर धूप / यादवेंद्र शर्मा Murari Sharma , फिल्म समीक्षा के बहाने- हिन्दी मीडियम, माम, वीरेन्द्र जैन Virendra Jain , बातें-मुलाक़ातें- कृष्णा अग्निहोत्री Krishna Agnihotri , ज्योति जैन Jyoti Jain , रंगमंच- आर्यभट्ट और नाटक ‘अन्वेषक’, प्रज्ञा Pragya Rohini , पेपर से पर्दे तक- कृष्णकांत पंड्या Krishna Kant Pandya, पुस्तक-आलोचन- यादों के गलियारे से / कैलाश मण्डलेकर Kailash Mandlekar , समीक्षा, वंदना गुप्ता Vandana Gupta Maitreyi Pushpa / वो सफ़र था कि मुकाम था, शिखा वार्ष्णेय Shikha Varshney Aruna Sabharwal / उडारी, डॉ. ज्योति गोगिया @jyoti gogiya Sudha Om Dhingra / धूप से रूठी चाँदनी, योगिता यादव Yogita Yadav Shashi Padha / लौट आया मधुमास, शरद सिंह Sharad Singh@manohar agnani / अंदर का स्कूल, तरही मुशायरा Digamber Naswa Nusrat Mehdi @mahesh khalish Saurabh Pandey Nirmal Sidhu Girish Pankaj Tilak Raj Kapoor @sudhir tyagi @vasudeo agrwal Rakesh Khandelwal , आवरण चित्र- पल्लवी त्रिवेदी Pallavi trivedi photography photography - डिज़ायनिंग-सनी गोस्वामी Sunny Goswami । आपकी प्रतिक्रियाओं का संपादक मंडल को इंतज़ार रहेगा। पत्रिका का प्रिंट संस्करण भी समय पर आपके हाथों में होगा।
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शिवना साहित्यिकी का अप्रैल-जून 2017 अंक अब ऑनलाइन उपलब्धl है।

मित्रों, संरक्षक तथा सलाहकार संपादक सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra, प्रबंध संपादक नीरज गोस्वामी Neeraj Goswamy , संपादक पंकज सुबीर Pankaj Subeer , कार्यकारी संपादक- शहरयार Shaharyar तथा सह संपादक पारुल सिंह Parul Singh के संपादन में शिवना साहित्यिकी का अप्रैल-जून 2017 अंक अब ऑनलाइन उपलब्धl है। इस अंक में शामिल है संपादकीय, शहरयार। व्यंग्य चित्र -काजल कुमार Kajal Kumar । कविताएँ- तनवीर अंजुम Tanveer Anjum , वंदना मिश्र , जया जादवानी Jaya Jadwani । शख़्सियत - होता है शबोरोज़ तमाशा मिरे आगे, सुशील सिद्धार्थ Sushil Siddharth । कहानी- नीला.....नहीं शीला आकाश, अमिय बिन्दु Amiya Bindu । फिल्म समीक्षा के बहाने- जौली एलएलबी, वीरेन्द्र जैन Virendra Jain। आवरण चित्र के बारे में....- गेंद वाला फोटो / पल्लवी त्रिवेदी Pallavi Trivedi । ख़बर कथा एक थी सोफिया और बिखरे सपने , ब्रजेश राजपूत Brajesh Rajput । पुस्तक-आलोचना- उजली मुस्कुराहटों के बीच / डॉ. शिवानी गुप्ता विमलेश त्रिपाठी । पुस्तकें इन दिनों.... - छल / अचला नागर Achala Nagar , पकी जेठ का गुलमोहर / भगवान दास मोरवाल भगवानदास मोरवाल , भ्रष्टाचार के सैनिक / प्रेम जनमेजय । कथा-एकाग्र- शकील अहमद। समीक्षा- डॉ. सुशील त्रिवेदी / जलतरंग, माधुरी छेड़ा / गीली मिट्टी के रूपाकार। एक कहानी, एक पत्र.... Prem Bhardwaj सुधा ओम ढींगरा। पड़ताल नया मीडिया : नया विश्व, नया परिवेश, डॉ. राकेश कुमार Rakesh Kumar । तरही मुशायरा ( Nusrat MehdiRajni Malhotra Nayyar Rakesh Khandelwal Bhuwan Nistej Nirmal Sidhu धर्मेन्द्र कुमार सिंह Digamber Naswa @gurpreet singh @nakul gautam Dwijendra Dwij Girish Pankaj @anshul tiwari Pawan Kumar Ias Neeraj Goswamy Tilak Raj Kapoor @anita tahzeeb @ Saurabh Pandey Parul Singh @mustafa mahir Ashwini Ramesh Mansoor Ali Hashmi Pankaj Subeer @sudheer tyagi Madhu Bhushan Sharma । आवरण चित्र- पल्लवी त्रिवेदी Pallavi Trivedi - डिज़ायनिंग-सनी गोस्वामी Sunny Goswami
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शिवना साहित्यिकी का जनवरी-मार्च 2017 अंक

      मित्रों, संरक्षक तथा सलाहकार संपादक सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra, प्रबंध संपादक नीरज गोस्वामी Neeraj Goswamy , संपादक पंकज सुबीर तथा सह संपादक पारुल सिंह Parul Singh के संपादन में शिवना साहित्यिकी का जनवरी-मार्च 2017 अंक अब ऑनलाइन उपलब्धl है। इस अंक में शामिल है :- आवरण चित्र पल्लवी त्रिवेदी Pallavi Trivedi, आवरण कविता / लालित्य ललित Lalitya Lalit  संपादकीय शहरयार Shaharyar  व्यंग्य चित्र / काजल कुमार Kajal Kumar  संस्मरण नासिरा शर्मा Nasera Sharma (सौजन्य गीताश्री Geeta Shree)  कविताएँ, कुछ कविताएँ सरहद पार से.. ज़ेबा अल्वी । कहानी दिलों की एक आवाज़ ऊपर उठती हुई ... मुकेश वर्मा Mukesh Verma  आलोचना राकेश बिहारी Ravi Buley की कहानी पर । फिल्म समीक्षा के बहाने, दंगल, वीरेन्द्र जैन Virendra Jain  पुस्तक-आलोचना, सत्कथा कही नहीं जाती, क्यों?, संतोष चौबे Santosh Choubey  डायरी, धरमिंदर पाजी दा जवाब नहीं, नीरज गोस्वामी Neeraj Goswamy  पेपर से पर्दे तक..., कृष्णकांत पंड्या Krishna Kant Pandya  यात्रा-वृत्तांत, अंडमान निकोबार द्वीप, संतोष श्रीवास्तव Santosh Srivastava, समीक्षा, महेश दर्पण Mahesh Darpan / डेक पर अँधेरा / हीरालाल नागर Hiralal Nagar , सरिता शर्मा / पृथ्वी को हमने जड़ें दीं / नीलोत्पल Neelotpal Ujjain , जया जादवानी Jaya Jadwani / नक़्क़ाशीदार केबिनेट/ सुधा ओम ढींगरा Sudha Om Dhingra , हृदेश सिंह/ वाबस्ता / पवन कुमार Pawan Kumar Ias , महत्त्वपूर्ण पुस्तकें, तीन विधाएँ, तीन लेखक, तीन पुस्तकें / लता सुरगाथा- यतीन्द्र मिश्र Yatindra Mishra , हाशिये का राग- सुशील सिद्धार्थ Sushil Siddharth , चांद डिनर पर बैठा है- स्वप्निल तिवारी Swapnil Tiwari  पड़ताल- शिवना पुस्तक विमोचन समारोह Partap Sehgal प्रेम जनमेजय Sushil Siddharth Pragya Rohini Jyoti Jain Suryakant Nagar Nirmla Kapila Neeraj Goswamy Parul Singh Sudha Om Dhingra , तरही मुशायरा Nusrat Mehdi Neeraj Goswamy Tilak Raj Kapoor Ismat Zaidi Shifa Saurabh Pandey गिरीश पंकज kumar Prjapati धर्मेन्द्र कुमार सिंह Digamber Naswa naveen chaturvedi Devi Nangrani Sanjay Dani Ashwini Ramesh Pooja Bhatia sandhya rathore prasad dinesh kumar anshul tiwari नकुल गौतम Pankaj Subeer  डिज़ायनिंग सनी गोस्वामी Sunny Goswami आपकी प्रतिक्रियाओं का संपादक मंडल को इंतज़ार रहेगा। पत्रिका का प्रिंट संस्करण भी समय पर आपके हाथों में होगा।
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