समीर लाल जी का काव्‍य संग्रह बिखरे मोती, उड़नतश्‍तरी का दूसरा रूप जो गहन और गम्‍भीर है । बिखरे मोती प्रकाशित अब विमोचन की प्रतीक्षा कीजिये ।

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समीर जी की पुस्‍तक पे काम करना मुश्किल इसलिये था कि वे भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं । वे व्‍यंग्‍य भी लिखते हैं और हास्‍य भी, गीत भी लिखते हैं और ग़ज़ल भी, मुक्‍तक भी लिखते हैं और सोनेट भी ।  तिस पर ये भी कि कोई भी विधा में कमजोर नहीं हैं वे । जब पांडुलिपि को लेकर शिवना प्रकाशन के  श्री नारायण कासट जी, श्री रमेश हठीला जी, श्री हरिओम शर्मा जी के साथ बैठकर चर्चा हो रही थी तो सभी एकमत थे इस बात को लेकर कि संग्रह में कोई एक ही रंग जाना चाहिये क्‍योंकि अलग अलग विधाएं एक साथ देने पर किसी के साथ भी न्‍याय नहीं हो पाता है । और सभी को श्री समीर लाल जी की गम्‍भीर कविताएं अधिक पसंद आ रही थीं । उसके पीछे एक कारण ये भी है कि जब बात पढ़ने की आती है तो हास्‍य से जियादह गम्‍भीर विषय ही लोगों को पसंद आते हैं । खैर तो समीर जी से बात की गई और उन्‍होंने एक लाइन का मेल किया 'पंचों की राय सर आंखों पर' । तो निर्णय ये हुआ कि बिखरे मोती में समीर जी के गम्‍भीर रूप का ही दर्शन होगा । मेरे विचार में विश्‍व की महानतम फिल्‍म अगर कोई है तो वो है 'मेरा नाम जोकर' उस फिल्‍म का एक दोष बस ये ही था कि वो अपने समय से पहले आ गई और उसे बनाने वाला एक भारतीय था, अन्‍यथा तो आस्‍करों जैसे पुरुस्‍कारों से भी ऊपर थी वो फिल्‍म । यहां पर अचानक मेरा नाम जोकर की बात इसलिये कि उस फिल्‍म में भी यही बताया है कि किस प्रकार अंदर से रो रहा आदमी ऊपर से लोगों को हंसाने का प्रयास करता है । समीर जी के साथ भी वहीं है, उनकी बेर वाली माई की कविता में जो अंत में मीर की ग़ज़ल का उदाहरण आया है वो स्‍तम्भित करने वाला है । बिखरे मोती में समीर जी के गीत हैं, छंदमुक्‍त कविताएं हैं, ग़ज़लें हैं, मुक्‍तक हैं और क्षणिकाएं हैं । पुस्‍तक का अत्‍यंत सुंदर आवरण पृष्‍ठ छबी मीडिया के श्री पंकज बैंगाणी द्वारा किया गया है बानगी आप भी देखें

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पुस्‍तक की भुमिका वरिष्‍ठ कवि श्रद्धेय श्री कुंवर बेचैन साहब ने लिखी है वे अपने समीक्षा में लिखते हैं समीर लाल मूलत: प्रेम के कवि हैं । पहले तो मैं ये पंक्तियां पढ़कर चकराया कि कुंवर साहब ऐसा क्‍यों लिख रहे हैं । फिर मुझे अपने उस्‍ताद की बात याद आई कि बड़े लोग यदि कुछ कह रहे हैं तो किसी न किसी कारण से ही कह रहे हैं । मैंने कुंवर जी की बात के संदर्भ में पुन: समीर जी की कविताएं देखीं तो मुझे हर कहीं प्रेम नजर आया । पूरी तरह से समर्पित प्रेम की एक बानगी देखिये

मेरा वजूद एक सूखा दरख्‍़त

तू मेरा सहारा न ले,

मेरे नसीब में तो

एक दिन गिर जाना है

मगर मैं

तुझको गिरते हुए नहीं देख सकता प्रिये

राकेश खण्‍डेलवाल जी ने अपनी भूमिका में लिखा है कि समीर लाल जी के दर्शन की गहराई समझने की कोशिश करता हुआ आम व्‍यक्ति भौंचक्‍का रहा जाता है । सच कहा है राकेश जी ने क्‍योंकि हास्‍य के परदे में छुपा कवि जब कहता है

वो हँस कर

बस यह एहसास दिलाता है

वो जिन्‍दा है अभी

कौन न रहेगा भौंचक्‍का सा ऐसी कविता को पढ़कर या सुनकर ।

श्री रमेश हठीला जी ने लिखा है कि नेट भर जिस प्रकार उड़नतश्‍तरी लोकप्रिय हुई उसी प्रकार साहित्‍य में बिखरे मोती उसी कहानी को दोहराने जा रही है ।

3 comments:

गौतम राजऋषि said...

शिवना का ये अपना-सा पन्ना बहुत भाया गुरूदेव....बस ऐसे ही एक सोच उठी मन में कि क्या कभी दूर भविष्य में मैं भी इस लायक हो पाऊँगा कि शिवना से मेरी भी कोई किताब छपे...

हा! हा!!
कल्पना-मात्र ही रोमांचकारी है...

जहान said...

mere blog par aane aur comment dene ke liye shukriya

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

priya bhai,
aapke prakashan ki gatividhiyon ke vishaya mey vistaar se bataiye.
prakashan ke liye kya karna hoga bataiye.
mera no hai 9425898136
aapka hi dr.bhoopendra singh
ps.yadi koi sample book ho to use mere pate 6-gopalpur tower,tala house campus,rewa mp
486001 per bhejne ki kripa kijiye.
sader,
dr.bhoopendra