श्री नीरज गोस्‍वामी जी को सुकवि रमेश हठीला शिवना सम्‍मान प्रदान किये जाने के समारोह तथा मुशायरे के वीडियो ।

नीरज जी के सम्‍मान समारोह के बाद कुछ व्‍यस्‍तता और बढ़ गई । जैसा कि आपको पता है कि मेरा शहर सीहोर अपने कवि सम्‍मेलनों तथा मुशायरों के लिये प्रसिद्ध है । तो हाल ये कि 17 नवंबर को एक अखिल भारतीय कवि सम्‍मेलन हुआ, 1 दिसंबर को अखिल भारतीय मुशायरा फिर 2 दिसंबर को शिवना प्रकाशन का मुशायरा । और कल रात को फिर एक अखिल भारतीय मुशायरा उत्‍तराखंड के राज्‍यपाल महामहिम अज़ीज़ क़ुरैशी जी के सम्‍मान में आयोजित किया गया । उसमें से कल देर रात लौटा । और अब 24 को एक अखिल भारतीय कवि सम्‍मेलन है जिसमें सत्‍यनारायण सत्‍तन जी, अंजुम रहबर, विनीत चौहान, राजेंद्र राजन, आदि आदि आ रहे हैं । नवंबर से फरवरी तक सीहोर का माहौल खूब काव्‍यमय हो जाता है । फिर फरवरी के बाद धीरे धीरे गर्मियों के कारण आयोजन कम हो जाते हैं । परसों जब याद आया कि इस भागदौड़ में श्री नीरज जी के सम्‍मान के वीडियो अभी तक अपलोड नहीं हो पाये हैं तो कल मुशायरे की तैयारी के साथ साथ वो काम भी शुरू किया । और शाम तक सारे वीडियो अपलोड हो गये ।

सबसे पहले तो ये कि उस कार्यक्रम के पूरे फोटो अब वेब अल्‍बम पर उपलब्‍ध हैं । जिनको आप यहां https://picasaweb.google.com/117630823772225652986/NEERAJGOSWAMIJISAMMANANDMUSHAIRA 

पर जाकर देख सकते हैं तथा डाउनलोड भी कर सकते हैं । यहां पर पूरे फोटो उपलब्‍ध हैं । ब्‍लाग पर कुछ कम लगाये गये थे । तो पहले आप फोटो का आनंद लीजिये और उसके बाद वीडियो का ।

इस बार के मुशायरे में डार्क हार्स की तरह सुलभ जायसवाल ने अपनी ग़ज़ल पढ़ी । डार्क हार्स इसलिये कि उसके पढ़ने के अंदाज़ ने मुझे भी चौंका दिया । अंकित ने तो पढ़ने की रिदम बहुत पहले पकड़ ली है । बस ये कि श्रोताओं को शेर समझाने की आदत छोड़नी होगी । अंकित ने जोरदार पढ़ा । प्रकाश अर्श के पास भी कहने का अंदाज़ अब अच्‍छा हो गया है । अर्श ने पिछले कुछ सालों में जो प्रोग्रेस की है वो उसके प्रस्‍तुतिकरण में दिखती है ।

प्रदीप कांत को मैंने पहली बार सुना । गौतम को धन्‍यवाद एक अच्‍छे शायर को सुनवाने के लिये । और इसी प्रकार का धन्‍यवाद वीनस को डॉ बाली जैसे अच्‍छे शायर को सुनवाने के लिये । दोनों को सुन कर बहुत अच्‍छा लगा । फिर श्री नीरज गोस्‍वामी जी का सम्‍मान किया गया साथ ही सीहोर की साहित्यिक संस्‍थाओं को भी सम्‍मानित किया गया ।

ये वीडियो मंच के लूटे जाने का साक्षात प्रमाण है । सनद रहे और वकत पर काम आये  कि इन दो शायरों ने पूरा मुशायरा लूट लिया था । गौतम ने सीहोर में अपने इतने फैन बना लिये हैं कि अब तो इस कमबख्‍़त से रश्‍क होने लगा है । क्‍या खूब पढ़ा । हर कोई एक ही सवाल कर रहा है कर्नल अगली बार कब आएंगे । और यही किया नीरज जी ने । उनकी मुम्‍बइया ग़ज़लों ने मार ही डाला । श्रोता दीवाने हो गये । लोगों की फरमाइश है कि सीहोर में श्री नीरज गोस्‍वामी और गौतम राजरिशी का एकल काव्‍य पाठ हो । इनको लोग मन भर के सुनना चाहते हैं ।

श्री तिलक राज जी को भी मैंने पहली बार सुना । उनकी ग़ज़लें जैसी होती हैं वैसा ही उनका प्रस्‍तुतिकरण भी है । एक बार बीच में मां पर शेर कहते समय वे कुछ भावुक हो गये । तिलक जी ने पूरे रंग में काव्‍य पाठ किया । आदरणीया भाभीजी की उपस्थिति में ये रंग तो जमना ही था ।

भोपाल के श्री मुजफ्फर जी ने अपने ही विशेष अंदाज़ में ग़ज़लें पढ़ीं । उनके बाद मुशायरे का संचालन कर रहे डॉ आजम जो ने काव्‍य पाठ किया । आजम जी अपने शेरों से अचानक चौंका देते हैं । उसके बाद हिंदी कवि सम्‍मेलन मंचों के कवि शशिकांत यादव ने अपनी प्रस्‍तुतियां दीं । शशिकांत यादव का अपना एक अंदाज़ है ।

मुशायरे की सदारत कर रहे जनाब इक़बाल मसूद साहब का सम्‍मान किया गया तथा उसके बाद उन्‍होंने अपनी ग़ज़लों का पाठ किया । कच्‍ची है गली उनकी बारिश में न जा ऐ दिल, इस उम्र में जो फिसले मुश्किल से संभलता है जैसों शेरों को तहत के अपने ही अंदाज़ में जब उन्‍होंने पढ़ा तो श्रोता झूम उठे । सदर के काव्‍य पाठ के साथ ही मुशायरे का समापन हुआ ।

नये साल का मिसरा ए तरह तैयार हो रहा है । इस बार कुछ कठिन काम करने की योजना है । देखें कहां तक सफल होते हैं । 

‘‘हैं निगाहें बुलंदियों पे मेरी, क्या हुआ पांव गर ढलान पे है’’ नीरज गोस्वामी को शिवना प्रकाशन का ''सुकवि रमेश हठीला स्मृति शिवना सम्मान'' प्रदान किया गया

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हिंदी के सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार नीरज गोस्वामी को एक गरिमामय साहित्यिक आयोजन में शिवना प्रकाशन द्वारा स्‍थापित वर्ष 2012 का ''सुकवि रमेश हठीला स्मृति शिवना सम्मान'' प्रदान किया गया । स्थानीय ब्ल्यू बर्ड स्कूल के सभागार में आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में विधायक श्री रमेश सक्सेना उपस्थित थे । अध्यक्षता नगरपालिका अध्यक्ष श्री नरेश मेवाड़ा ने की । विशिष्ट अतिथि के रूप में नागरिक बैंक अध्यक्ष कैलाश अग्रवाल, हिंदी सुप्रसिद्ध कवि शशिकांत यादव एवं उर्दू के मशहूर शायर श्री इक़बाल मसूद उपस्थित थे ।

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कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रकाश व्यास काका ने बैज लगाकर तथा सदस्यों अनिल पालीवाल, हरिओम शर्मा दाऊ, उमेश शर्मा, जयंत शाह, शैलेश तिवारी, श्रवण मावई, सुनील भालेराव, चंद्रकांत दासवानी, बब्बल गुरू  ने पुष्पगुच्छ भेंट कर  किया ।

मुम्बई के कवि नीरज गोस्वामी को सुकवि रमेश हठीला शिवना सम्मान के तहत मंगल तिलक कर एवं शाल, श्रीफल, सम्मान पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया ।

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श्री गोस्वामी का परिचय शिवना प्रकाशन के  पंकज सुबीर ने प्रस्तुत किया ।

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इस अवसर पर शिवना प्रकाशन की ओर से शहर की साहित्यिक संस्थाओं स्मृति के श्री अम्बादत्त भारतीय, बज़्मे फरोगे उर्दू अदब के तमकीन बहादुर, हिन्दू उत्सव समिति के सतीश राठौर, अंजुमने सूफियाए उर्दू अदब के अफ़ज़ाल पठान को साहित्यिक कार्यक्रमों के सफल आयोजन हेतु प्रशस्ति पत्र प्रदान किये गये ।

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कार्यक्रम के दूसरे चरण में श्री इक़बाल मसूद की अध्यक्षता में एक मुशायरे का आयोजन किया गया जियमें देश भर के शायरों ने ग़ज़लें पढ़ीं ।

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नई दिल्ली के सुलभ जायसवाल ने मुशायरे का प्रारंभ करते हुए ‘बेसहारा मुल्क लेकर चीखता रहता हूं मैं’ ग़ज़ल पढ़कर श्रोताओं की दाद बटोरी ।

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मुम्बई के अंकित सफर ने युवाओं की भावनाओं को ‘बढ़ाने दोस्ती गालों पे कुछ पिम्पल निकल आये’ के माध्यम से बखूबी व्यक्त किया ।

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नई दिल्ली के प्रकाश अर्श ने ‘मैं लम्हा हूं कि अर्सा हूं कि मुद्दत न जाने क्या हूं बीता जा रहा हूं’ सहित कई शेर पढ़े ।

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काश्मीर के कर्नल गौतम राजरिशी ने अपने शानदार अंदाज़ में ‘चांद इधर छत पर आया है थक कर नीला नीला है’ जैसी शानदार ग़ज़लें पढ़कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ।

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इन्दौर के शायर प्रदीप कांत ने ‘थोड़े अपने हिस्से हम बाकी उनके किस्से हम’ सहित छोटी बहर पर लिखी गई अपनी कई ग़ज़लें पढ़ीं।

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भोपाल के शायर तिलक राज कपूर ने 'जब उसे कांधा दिया दिल ने कहा' के माध्‍यम से श्रोताओं की संवेदनाओं को झकझोर दिया ।

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भोपाल के  डॉ सूर्या बाली ने अपनी ग़ज़ल ‘बाज़ार ने गरीबों को मारा है इन दिनों’ पढ़कर श्रोताओं की खूब दाद बटोरी ।

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सम्मानित कवि नीरज गोस्वामी की मुम्बइया शैली की ग़ज़लों को श्रोताओं ने खूब सराहा । ‘जिसको चाहे टपका दे, रब तो है इक डान भीडू’ तथा ‘क्या हुआ पांव गर ढलान पर है’  शेरों  को श्रोताओं ने खूब पसंद किया । उन्होंने तरन्नुम में भी कुछ ग़ज़लें पढ़ीं ।

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मुशायरे का संचालन कर रहे शायर डॉ आज़म ने अपनी ग़ज़ल ‘अजब हाल में महफिलें हैं अदब की’ पढ़ी ।

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हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि शशिकांत यादव ने आपने चिरपरिचित अंदाज़ में ओज तथा देशभक्ति के गीत एवं छंद पढ़े । सैनिकों तथा राजनीतिज्ञों की तुलना करते हुए उन्होंने कविता का सस्वर पाठ किया ।

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मुशायरे की अध्यक्षता कर रहे इक़बाल मसूद ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि ये नयी पीढ़ी हिन्दी और उर्दू के बीच पुल बनाने का काम कर रही है । उन्होंने सभी शायरों की ग़ज़लों को सराहा । श्री मसूद ने अपनी कई सुप्रसिद्ध ग़ज़लें पढ़ीं । ‘इस उम्र में जो फिसले मुश्किल से संभलता है’ शेर को श्रोताओं ने जमकर सराहा । देर रात तक चले इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के हिंदी उर्दू के साहित्यकार, पत्रकार, एवं श्रोतागण उपस्थित थे ।

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अंत में आभार पत्रकार श्री शैलेष तिवारी ने व्यक्त किया ।

कार्यक्रम के समाचार आप यहां

http://www.pradeshtoday.com/epaper.php?ed=5&date=2012-12-04#

और यहां

http://naiduniaepaper.jagran.com/Details.aspx?id=431352&boxid=108313986

और यहां

http://www.patrika.com/news.aspx?id=947395

देख सकते हैं ।

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‘‘आसान अरूज़’’ बहुत ज़रूरी था इस किताब का आना

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पाँच साल पहले जब इंटरनेट और ब्लाग की दुनिया में क़दम रखा तो वहाँ ग़ज़लों को लेकर बहुत निराशाजनक वातावरण था । जिस ग़ज़ल में बह्र और कहन तो दूर की बात, रदीफ़ और क़ाफ़िया तक नहीं दुरुस्त थे उस पर पचास पचास टिप्पणियाँ आ रही थीं और हर टिप्पणी में एक ही बात लिखी होती थी, ‘‘वाह क्या बात है’’, ‘‘बहुत उम्दा’’, आदि आदि । पढ़ कर, देख कर क्रोध भी आता था और निराशा भी होती थी । मगर फिर ये भी लगता था कि ये जो ग़ज़लें कही, सुनी और सराही जा रही हैं ये हिंदी ग़ज़लें हैं । इन ग़ज़लों को कहने वाले वे लोग हैं जो उर्दू नहीं जानते और ग़ज़ल का छंद शास्त्र या अरूज़ की सारी मुकम्मल पुस्तकें उर्दू लिपि में ही हैं । हाँ इधर कुछ एकाध पुस्तकें देवनागरी में आईं अवश्य, लेकिन उनको मुकम्मल नहीं कहा जा सकता, वे केवल बहुत प्रारंभिक ज्ञान देने वाली पुस्तकें रहीं । ऐसे में क्रोध करने से ज़्यादा बेहतर लगा कि स्थिति को बदलने का प्रयास किया जाये । स्थिति को बदलने का प्रयास करने के लिये ही अपने ब्लाग पर अरूज़ की जानकारी देनी प्रारंभ की । फिर ये लगा कि ये जानकारी भी कितने लोगों तक पहुँच पा रही है, केवल उतने ही लोगों तक जो कि इंटरनेट से जुड़े हैं । जिनको कम्प्यूटर का ज्ञान है । ऐसे लोगों की संख्या बहुत बढ़ी तो है मगर आज भी हर कोई इंटरनेट और कम्प्यूटर से भिज्ञ नहीं है । तो फिर क्या किया जाये । इधर हिंदी में ग़ज़ल की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है । हर कोई ग़ज़ल कहना चाहता है, हिंदी की ग़ज़ल । ज़ाहिर सी बात है ग़ज़ल में जो स्वतंत्रता है वो सभी को आकर्षित करती है । विषय को पूरी कविता तक साधने का कोई बंधन नहीं है, शेर ख़त्म बात ख़त्म, अब अगले शेर में कुछ और कहा जाये । मगर बात तो वही है कि हिंदी में ग़ज़लकार तो बढ़े और अच्छी ख़ासी संख्या में बढ़े, लेकिन इन सबके बाद भी कोई ऐसी प्रमाणिक तथा सम्पूर्ण पुस्तक देवनागरी में नहीं आई जो इन नवग़ज़लकारों को न केवल मार्गदर्शन दे, बल्कि इनका स्थापित शाइर बनने तक का रास्ता भी प्रशस्त करे । इसलिये भी, क्योंकि इन नवग़ज़लकारों में कई अपनी कहन में संभावनाओं की चमक दिखा रहे हैं तथा यदि कहन की इस चमक में इल्मे अरूज़ का स्पर्श और हो जाये तो बात वही सोने पे सुहागा वाली हो जायेगी । हिंदी में उर्दू की तरह कोई समृद्ध तथा सुदृढ़, उस्ताद शागिर्द परंपरा भी नहीं है जिसका लाभ नव ग़ज़लकारों को मिल सके । ऐसे में अब इन नवग़ज़लकारों के पास एक ही रास्ता शेष रहता था कि पहले ये उर्दू लिपि सीखें और उसके बाद उर्दू लिपि में उपलब्ध इल्मे अरूज़ की पुस्तकों का अध्ययन करें । उसमें भी ये दिक़्क़त कि इल्मे अरूज़ पर जो पुस्तकें उर्दू में भी उपलब्ध हैं वो इतनी आसान नहीं हैं कि आपने पढ़ीं और आपको ग़ज़ल कहने का फ़न आ गया । यक़ीनन उर्दू लिपि में जो पुस्तकें हैं वो इल्मे अरूज़ पर ज्ञान का भंडार हैं लेकिन नवग़ज़लकारों को चाहिये वो सब कुछ आसान लहज़े में । और यहीं से विचार जन्म लिया ‘‘आसान अरूज़’’ का । ‘‘आसान अरूज़’’, एक ऐसी पुस्तक जो न केवल देवनागरी लिपि में हो, बल्कि जो बहुत आसान, बहुत सरल तरीके से अरूज़ को सिखाए । ऐसी पुस्तक जो केवल और केवल किसी उर्दू में उपलब्ध पुस्तक का अनुवाद न हो बल्कि कई कई पुस्तकों के ज्ञान का निचोड़ जिसमें हो । कई बार केवल अनुवाद भर कर देने से चीज़ें और भी ज़्यादा क्लिष्ट हो जाती हैं तथा समझने में परेशानी होती है । कुल मिलाकर बात ये कि जो विचार ‘‘आसान अरूज़’’ के नाम से जन्मा था वो अपने नाम के अनुरूप आसान नहीं था ।
इस ‘‘आसान अरूज़’’ को जो लोग आसान बना सकते थे उनमें कुछ ही नाम नज़र आये और सबसे मुफ़ीद नाम उनमें से अपने मित्र तथा बहुत अच्छे शायर डॉ. आज़म का लगा । इसलिये भी कि इल्मे अरूज़ पर उन्हें अच्छी महारत हासिल है तथा उन्होंने सीखते रहने की प्रक्रिया को कभी ठंडा नहीं पड़ने दिया । इल्मे अरूज़ पर अपने अध्ययन के माध्यम से ही उन्होंने ये महारत हासिल की । आज वे एक उस्ताद शायर हैं क्योंकि फेसबुक के माध्यम से कई समूहों से जुड़े हैं तथा देश विदेश के ग़ज़लकार उनसे इस्लाह लेते हैं । डॉ. आज़म का नाम आसान अरूज़ के लिये सबसे बेहतर लगने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण और भी था । वो कारण था हिंदी भाषा पर भी उनकी अद्भुत पकड़ तथा हिंदी शब्दकोष पर उनका अधिकार । वे जितने अच्छे उर्दू के ज्ञाता हैं उतने ही अच्छे हिंदी के विद्वान हैं । उस पर ये कि इल्मे अरूज़ के भी उतने ही माहिर । चूंकि पुस्तक को देवनागरी में आना है और हिंदी भाषियों के लिये आना है सो ऐसे ही किसी विद्वान की आवश्यकता थी जो उन दोनों भाषाओं को ज्ञाता हो जिनके बीच कार्य होना है साथ ही विषय का भी ज्ञाता हो । विषय का ज्ञान इसलिये आवश्यक है कि यहाँ अनुवाद नहीं होना है बल्कि सरलीकरण होना है । सरलीकरण करने के लिये विषय का ज्ञान और हिंदी भाषा का ज्ञान इस पुस्तक की सबसे आवश्यक शर्त थी । जब डॉ. आज़म से बात की तो उन्होंने भी इस विषय में अपनी सहमति देने भी बिल्कुल देर न लगाई । तो दो साल पहले इस ‘‘आसान अरूज़’’ की नींव डल गई । लेकिन जैसा मैंने पहले कहा कि ये काम पुस्तक के नाम की तरह आसान नहीं था । तो पुस्तक को यहाँ तक आने में दो साल लग गये । इस बीच पुस्तक को लेकर डॉ. आज़म ने ख़ूब जम कर काम किया । सारे संदर्भ ग्रंथ खँगाल डाले । जहाँ जो कुछ भी ऐसा मिला जो ‘‘आसान अरूज़’’ के लिये ज़ुरूरी था उसे जोड़ते गये । छोटी-छोटी जानकारियाँ जिनके बारे में कोई नहीं बताता । वो छोटी-छोटी ग़लतियाँ जिनके चलते नवग़ज़लकारों को अक्सर शर्मिंदा होना पड़ता है, उन सब को पुस्तक में समाहित करते चले गये । जुड़ने-जुड़ाने का ये सिलसिला यूँ होता गया कि पुस्तक का आकार भी बढ़ गया । जिस आकार में सोच कर चले थे उससे लगभग दुगने आकार में अब ये पुस्तक पहुँच गई है । मगर इसके फाइनल ड्राफ़्ट को जब पढ़ा तो मेहसूस हुआ कि ये पुस्तक नवग़ज़लकारों के लिये सौ तालों की एक चाबी होने जा रही है । सचमुच इस पुस्तक पर डॉ. आज़म ने बहुत परिश्रम किया है, जो पूरी पुस्तक में दिखाई देता है । ‘‘रावणकृत ताण्डव स्त्रोत’’ तथा ‘‘श्री रामचरित मानस’’ से संदर्भ उठा कर बात कहने के उदाहरण ये बताते हैं कि लेखक पुस्तक को लेकर कितना गंभीर रहा है तथा काव्य को लेकर कहाँ कहाँ पड़ताल की गई है । हिन्दी में लेखक और लेखन को धन्यवाद देने की परम्परा नहीं है, लेखक को ‘‘टेकन फार ग्रांटेड’’ लिया जाता है । लेकिन मुझे लगता है कि इस प्रकार की पुस्तकों के लिये ये परम्परा टूटनी चाहिये और लेखक को ये पता चलना चाहिये कि उसका श्रम आपके काम आ रहा है । शोध एक श्रम साध्य काम है जिसका परिणाम लेखक को नहीं बल्कि पाठक को मिलता है । इस दिशा में पहल करते हुए मैं स्वयं डॉ. आज़म का आभार व्यक्त करता हूँ कि उन्होंने ‘‘आसान अरूज़’’ को आसान बना दिया । मेरी ओर से बहुत बहुत धन्यवाद तथा पुस्तक को लेकर शुभकामनाएँ ।
                                            -पंकज सुबीर

उत्‍तराखंड के राज्‍यपाल महामहिम श्री अज़ीज़ क़ुरैशी जी ने शिवना प्रकाशन की डॉ आज़म लिखित पुस्‍तक आसान अरूज़ का भोपाल के शहीद भवन में आयोजित कार्यक्रम में विमोचन किया ।

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बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ : समीक्षा दिगंबर नासवा

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“बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ” डॉ उर्मिला सिंह, (ब्लॉग: “मन के-मनके”) के अपने शब्दों में “यह पुस्तक एक खोज है, उस स्वर्ग की जो हमारी मुट्ठी में बंद है” वो आगे लिखती हैं “मैंने अपने स्वर्ग को स्वयं ढूँढा है, स्वयं रचा है और उसे पाया है”.
और सच कहूं तो जब मैंने इस पुस्तक को पढ़ने की शुरुआत की तो मुझे भी लगा की वाकई स्वर्ग तो हमारे आस पास ही बिखरा हुवा है छोटी छोटी खुशियों में, पर हम उसे ढूंढते रहते हैं, खोजते रहते हैं मृग की तरह.
अपनी शुरूआती कविता में उर्मिला जी कहती हैं की स्वर्ग खोजने बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है ये तो आस पास ही फैला है, देखिये ...   
सूनी गोद में
किलकारियां भरते हुए
अनाथ बचपन को
आँचल से ढंकते हुए
बिखरे हैं, स्वर्ग
चारों.....तरफ

आगे आगे उनका कवी मन सचेत भी करता है, यहां तक की अपने आप से भी प्रश्न खड़ा करता है और कहता है
अपने निज अस्तित्व की खोज में
अपनत्व के खंडहरों पर चलते रहे
बहुत देर हो जाएगी और ....
खंडहरों के भी रेगिस्तान हो जाएंगे
ढहता हुवे टीला, रेत का
दबी फुसफुसाहटों में
कहता रह जाएगा..
बिखरे...हैं स्वर्ग
चारों...तरफ

मुझे याद आता है जब पहली बार हमारे मोहल्ले में ब्लैक एंड वाईट टी.वी. आया तो तो हम भी इतने खुश थे जैसे वो हमारे घर में आया हो. हफ्ते में एक दिन आने वाला चित्रहार और कृषि दर्शन भी ऐसे देखते की बस इससे ज्यादा कोई खुशी ही नहीं जीवन में. और आज जबकि सब कुछ है सब के पास फिर भी इतनी खुशी नहीं ... शायद इस लिए ही उर्मिला जी ने कहा है की खुशी ढूंढनी है तो बाहर निकलो अपने आप से और महसूस करो ...
पुस्तक की अधिकाँश कविताएं इन्ही बिखरे हुवे स्वर्ग की तलाश है ... हर कविता आपको जागृत करती हुयी सी है की ये देखो स्वर्ग यहां है ... यहां है ... और यहां भी है ... यहां उन सब कविताओं को लिख के आपका मज़ा खराब नहीं करना चाहता ...
आपको एक किस्सा सुनाता हूँ जानकार आश्चर्य होगा किताब पढ़ने के बाद ... मैंने बिल्डिंग के कुछ बच्चों से पूछा की मुझे अपने बचपन की कुछ यादें बताओ जिनसे तुम्हे खुशी मिली हो और जो तुम्हें याद हो तो उनके पास कुछ जन्म दिन की यादें, कुछ अपने स्कूल की बातें, और बहुत जोर डालने पे जहां जहां घूमने गए उन जगहों की बाते ही याद थीं ... फिर जब उन्होंने मुझसे पूछा तो लगा मेरे पास तो जैसे हजारों यादें हैं बचपन की ... छोटी छोटी बातें जिनमें जीवन का स्वर्ग सच में था ... छत पे बिस्तर लगा कर सोना, तारों और बादलों में शक्लें बनाना, गिल्ली डंडा और लट्टू खेलना, छुट्टियों में मामा या बूआ के घर जाना, आम चूपना, गन्ने चूसना, मधुमक्खी के छत्ते तोड़ना, बिजली जाने पे ऊधम मचाना, होली की टोलियाँ बनाना ... और देखा ... बच्चे बोर हो के चले गए अपने अपने फेस बुक पे ...   
असल बात तो ये है की स्वर्ग की पहचान भी नहीं हो पाती कभी कभी और इसलिए उर्मिला जी कहती हैं ...
स्वर्ग पाने से पहले
पहचान उसकी है जरूरी
स्वर्ग के भेष में, छुपे हैं
चारों तरफ कितने बहरूपिए

अगर गौर से देखें तो स्वर्ग तो पहले भी हमारे पास था और आज भी हमारे पास ही है बस हमें ढूँढना होगा छोटी छोटी खुशियों में.
इस पुस्तक के माध्यम से उर्मिला जी सचेत करना चाहती हैं की जागो, देखो आस पास की वो सभी चीजें जिनमें स्वर्ग की आभा सिमिट आई है, वो दिखाना चाहती हैं की कौन से पल हैं जीवन में जिनमें स्वर्ग पाया जा सकता है पर जाने अनजाने उन लम्हों कों देख नहीं पाते.
मैं अपने आपको खुशकिस्मत समझता हूँ की मुझे उर्मिला जी की ये किताब पढ़ने का मौका मिला, अपने बच्चों कों भी आग्रह कर के पढ़ने को कहा है जिससे वो भी जान सकें की “बिखरे हैं स्वर्ग चारों तरफ”
पुस्तक का प्रकाशन “शिवना प्रकाशन पी सी लैब, सम्राट काम्प्लेक्स बेसमेंट, बस स्टैंड, सीहोर – ४६६००१ (म.प्र)” से हुवा है मूल्य १२५ रूपये.

आप इसे उर्मिला जी से भी प्राप्त कर सकते हैं. उनका ई मेल है ...
ईमेल: urmila.singh1947@gmail.com
Mobile: +91-8958311465

श्री दिगंबार नासवा के ब्‍लाग स्‍वप्‍न मेरे http://swapnmere.blogspot.in/2012/06/blog-post_27.html से साभार ।

आसान अरूज़, ग़ज़ल के छंद विधान तथा तकनीकी जानकारी पर डॉ आज़म की लिखी एक मुकम्‍मल पुस्‍तक

बहुत दिनों से प्रकाशन इस प्रयास में था कि हिंदी में ग़ज़ल कह रहे ग़ज़लकारों के लिये देवनागरी में ही एक ऐसी पुस्‍तक हो जिसमें ग़ज़ल से संबंधित सम्‍पूर्ण तकनीकी जानकारी उपलब्‍ध हो । उर्दू में तो इस प्रकार की कई पुस्‍तकें हैं लेकिन हिंदी में कोई सम्‍पूर्ण पुस्‍तक नहीं है । इस काम को पूरा करने का बीड़ा उठाया हिंदी और उर्दू के साथ साथ ग़ज़ल पर समान अधिकार रखने वाले शायर डॉ आज़म ने । पुस्‍तक पर वे पिछले दो सालों से काम कर रहे थे । और होते होते ये पुस्‍तक अब एक मोटे ग्रंथ की शक्‍ल ले चुकी है । आसान अरूज़ के नाम से प्रकाशित ये पुस्‍तक हिंदी में ग़ज़ल कहने वालों के लिये एक मुकम्‍मल ग्रंथ है । जिसमें लगभग सारे  प्रश्‍नों के उत्‍तर मिल जाएंगे और वो भी आसान तरीके से । पुस्‍तक का प्रारंभ में सीमित संस्‍करण छापा जा रहा है । पुस्‍तक को मिलने वाले प्रतिसाद के बाद और प्रकाशित किया जायेगा ।

पुस्‍तक की जानकारी

नाम - आसान अरूज़ ( ग़ज़ल का छंद विधान तथा तकनीकी जानकारी )

लेखक - डॉ. आज़म ( सुकून, आई-193, पंचवटी कॉलोनी, एयरपोर्ट रोड, भोपाल, 426030, दूरभाष 09827531331)

मूल्‍य - 300 रुपये

पृष्‍ठ संख्‍या – 196 हार्ड बाउंड

ISBN -978-93-81520-02-4

प्रकाशक - शिवना प्रकाशन, पीसी लैब, सम्राट कॉम्‍प्‍लैक्‍स बेसमेंट, बस स्‍टैंड के सामने, सीहोर, म.प्र. 466001 दूरभाष 07562405545

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कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा को शिवना प्रकाशन ने किया सम्‍मानित

DSC_6863 ये षडयंत्र रचा जा रहा है कि अंग्रेजी अमीरों की भाषा हो जाये और हिंदी गरीबों की भाषा हो जाये । यदि ऐसा हो जाता है तो ये देश के लिये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा । हिंदी केवल गरीबों की का सूचक होकर रह जायेगी । सन दो हजार पचास तक आकर हिंदी की स्थिति भारत में बहुत खराब हो जायेगी । उक्त विचार लंदन के सुप्रसिद्ध भारतीय मूल के हिंदी कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा ने शिवना प्रकाशन द्वारा आयोजित अपने सम्मान कार्यक्रम में बोलते हुए व्यक्त किये ।

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तेजेन्द्र शर्मा इन दिनों भारत के प्रवास पर आये हुए हैं । तथा शिवना प्रकाशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने के लिये वे सीहोर आये । कार्यक्रम की अध्यक्षता स्थानीय स्नात्कोत्तर महाविद्यालय में हिंदी की विभागाध्यक्ष डॉ पुष्पा दुबे ने की । शिवना प्रकाशन की ओर से साहित्यकार पंकज सुबीर ने तेजेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर विस्तार से चर्चा की । इस अवसर पर शिवना प्रकाशन की ओर से तेजेन्द्र शर्मा का सम्मान किया गया ।

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डॉ पुष्पा दुबे, डॉ राजकुमारी शर्मा ने शाल श्रीफल भेंट कर उन्हें सम्मानित किया । इस अवसर पर पुश्किन सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ कथाकार हरि भटनागर को भी सम्मानित किया गया ।

DSC_6883 इस अवसर पर बोलते हुए डॉ पुष्पा दुबे ने तेजेन्द्र शर्मा के साहित्य पर विस्तार से प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि तेजेन्द्र शर्मा जी की कहानियों में विचारों तथा संवेदनाओं को अनोखा संतुलन दिखाई देता है ।

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उनकी कहानियों में विदेशी परिवेश होने के बाद भी कहीं न कहीं भारत दिखाई देता है । तेजेन्द्र शर्मा की कहानी कब्र का मुनाफा एक ऐसी कहानी है जो ये बताती है कि दुनिया के हर हिस्से में समस्याएं एक सी हैं ।

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इस अवसर बोलते हुए तेजेन्द्र शर्मा ने कहा कि हिंदी की समस्या हिन्दुस्तान में ही है विदेशों में नहीं है, वहाँ पर तो हमारा दीवानापन हिंदी को जिंदा रखे हुए है ।

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भारत में ये दीवानापन कहीं न कहीं कम हो रहा है जिसके कारण आज हिंदी की ये हालत है । उन्होंने कहा कि हम हिंदी के भले की बात मंचों पर तो करते हैं लेकिन हिंदी को जिंदा रखने के लिये कोई भी तैयार नहीं है ।

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हम अपने बच्चों को पढ़ाते अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में ही हैं । साहित्य की बात करते हुए उन्होंने कहा कि केवल कुछ ही विषयों पर लिखने का दबाव डालकर हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा अहित किया जा रहा है । विचारों को थोपा जा रहा है ।

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हिंदी लेखकों की लगभग ढाई पीढ़ी हिंदी के दो पुरोधाओं को ही संतुष्ट करने में खत्म हो गई । केवल उनके अनुसार साहित्य रचने के चक्कर में हिंदी साहित्य का बहुत अहित हो गया है । श्री शर्मा ने कहा कि लेखक कभी प्रवासी नहीं होता वो केवल लेखक होता है ।

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दुनिया की किसी भी भाषा में ये नहीं होता कि उसके कहानीकार को प्रवासी कहा जाये, ये केवल हिंदी में ही होता है । इससे पूर्व अतिथियों का स्वागत वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कद्रे तथा शैलेष तिवारी ने किया । इस अवसर बड़ी संख्या में शहर के गणमान्य नागरिक एवं पत्रकारण उपस्थित थे ।

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पत्रकारों से मुखातिब हुए तेजेन्द्र शर्मा
सीहोर । पत्रकारों से चर्चा करते हुए लंदन से आये वरिष्ठ साहित्यकार तेजेन्द्र शर्मा ने कहा कि हिंदी को समाज में जिंदा रखने के लिये सभी वर्ग के लोगों को प्रयास करने होंगे । क्योंकि यदि हम अभी जागरूक नहीं हुए तो आने वाले वर्षों में हम अपनी इस मातृभाषा से काफी दूर हो चुके होंगे । एक प्रश्न के उत्तर में श्री शर्मा ने कहा कि मैं अंग्रेजी के विरोध में नहीं हूँ ना ही हिंदी भाषियों को अंग्रेजी से दूर करने की बात कर रहा हूँ ।

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मैं तो हिंदी का सेवक हूँ और मैं ये चाहता हूँ कि जहाँ भी भारतीय रहें वे हिंदी को न छोड़ें अपने बच्चों को अंग्रेजी भाषी स्कूलों में पढ़ाएं जरूर पर अंग्रेजी एक विषय के रूप में पढ़ी जाये और उस पर भी विद्यार्थियों की पकड़ हिंदी की भांति रहे किसी दूसरी भाषा पर पकड़ बनाने के लिये ये जरूरी नहीं है कि हम अपनी मातृभाषा को ही भूल जाएं । आज विदेशों तथा इंटरनेट पर हिंदी को पर्याप्त महत्व दिया जा रहा है पर दुर्भाग्य का विषय ये है कि अपने देश से ही हिंदी को बाहर धकेलने की कोशिश की जा रही है । अंत में उन्होंने सभी लोगों से आग्रह किया कि वे अपने स्तर पर हिंदी के सम्मान को  बचाने की दिशा में प्रयासरत रहें मेरा विश्वास है कि सभी के प्रयास कभी विफल नहीं होते ।