शिवना के सरस्वती पूजन में शामिल हुए बुध्दिजीवी, शिवना के नये काव्य संग्रह अनुभूतियां का विमोचन

अग्रणी साहित्यिक संस्था शिवना ने वसंत पंचमी के अवसर पर ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का पूजन समारोह आयोजित किया । आयोजन में शहर के साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षाविद तथा बुध्दिजीवी शामिल हुए । स्थानीय पीसी लैब पर आयोजित सरस्वती पूजन तथा गोष्ठी के कार्यक्रम में शिक्षाविद् प्रो: डॉ. भागचंद जैन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी की प्राध्यापक डॉ. पुष्पा दुबे ने की ।

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सर्वप्रथम पंडित शैलेश तिवारी के मार्गदर्शन में शिवना के संस्थापक वरिष्ठ साहित्यकार श्री नारायण कासट ने सभी अतिथियों के साथ माँ सरस्वती का विधिपूर्वक पूजन किया ।

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तथा सभी उपस्थित जनों ने माँ सरस्वती को पुष्पाँजलि अर्पित की ।

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प्रथम खंड में विचार गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए संचालक के रूप में श्री नारायण कासट ने वसंत पंचमी तथा निराला जयंती पर विस्तृत प्रकाश डाला । वरिष्‍ठ साहित्‍यकार श्री कासट लम्‍बी बीमारी से लगभग ढाई साल तक ग्रस्‍त रहने के बाद किसी साहित्यिक आयोजन में उपस्थित हुए । वे पिछले ढाई साल से लगातार बिस्‍तर पर ही रहे । उन्‍होंने अपने संबोधन में कहा कि मुझे तो अब लग ही नहीं रहा था कि मैं अब वापस आ पाऊंगा किन्‍तु आज पुन: यहां आकर मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरा नवजीवन हो गया है । ये सबकी शुभकामनाओं का ही फल है ।

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उन्होंने कहा कि जो पुरातन हो चुका है उसका अंत और नूतन का प्रारंभ ही बसंत है । इसे हम कह सकते हैं कि पुरातन का बस अंत ही बसंत हैं ।

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इस अवसर पर शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित नये काव्य संग्रह इंग्लैंड के भारतीय मूल के कवि श्री दीपक चौरसिया मशाल के अनुभूतियाँ को शिवना के श्री रमेश हठीला ने माँ सरस्वती के चरणों में अर्पण किया  । साथ ही भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित पंकज सुबीर के कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी को भी मां सरस्वती को अर्पित किया गया ।

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मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो. भागचंद जैन ने कहा कि वसंत बताता है कि हमको प्रेम बाँटना सीखना चाहिये । प्रेम और स्नेह बाँटने से मनुष्य जीवन सफल हो जाता है ।

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अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. डॉ पुष्पा दुबे ने कहा कि वसंत पंचमी सरस्वती के अवतरण का दिवस है और हमारी लेखनी को मां सरस्वती के आशीर्वाद की आवश्यकता हमेशा ही बनी रहती है । उन्होंने कहा कि साहित्यकार के लिये संवेदनशील होना सबसे आवश्यक है और ये संवेदना उसे माँ सरस्वती ही प्रदान करती हैं । उन्होंने पंकज सुबीर के कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी पर भी चर्चा की ।

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कार्यक्रम के दूसरे खंड में आयोजित काव्य गोष्ठी का शुभारंभ कु. रागिनी शर्मा ने माँ सरस्वती की वंदना के साथ किया । रागिनी शर्मा ने श्री नारायण कासट के आग्रह पर लिंगाष्टक का भी सस्वर पाठ किया । जिस पर श्रोता मंत्रमुग्‍ध हो गये  । उल्‍लेखनीय है कि रागिनी प्रदेश के वरिष्‍ठ छायाकार श्री राजेंद्र शर्मा की सुपुत्री हैं तथा संस्‍कृत में विशेष शिक्षा प्राप्‍त कर रही हैं । कालीदास के संस्‍कृत नाटक में अभिनय भी कर चुकी हैं ।

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कवि गोष्ठी में लक्ष्मण चौकसे ने अपनी छंद मुक्त कविता आगे बढ़ता चल, श्री द्वारका बाँसुरिया ने अपना गीत जीवन रथ के सुख दुख दो पहिये चलना जीवन का सार, कवि लक्ष्मीनारायण राय ने दर्दीली जिंदगी और घुटन भरे गीत, प्रस्तुत की ।

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रागिनी शर्मा ने कविता आज रायाभिषेक हुआ था श्रीराम का, रमेश हठीला ने गीत मेरे अगर गाएँ मेरे अधर, ये तो एहसान होगा मेरे गीत पर, गूंगे प्राणों को मिल जाए स्‍वर माधुरी गुनगुना दें मेरे गीत को आप गर,  श्री शैलेश तिवारी ने छंदमुक्त कविता माँ शारदे को धन्यवाद और पंकज सुबीर ने गीत तेज समय की नदिया के बहते धारे हैं, यायावर हैं, आवारा हैं, बंजारे हैं प्रस्तुत किये ।

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कार्यक्रम का संचालन कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार श्री नारायण कासट ने अपने कई मुक्तक पढ़े दिल भी ना साथ गुँथे जब तक फूलों का हार अधूरा है, जैसे रागों के प्राण गिना स्‍वर का संसार अधूरा है, और श्रोताओं के बहुत अनुरोध पर उनहोंने अपनी सुप्रसिद्ध नथनिया गजल का सस्वर पाठ किया । उनका एक  मुक्‍तक-

आंखों में वासंती आमंत्रण आंज कर,

जूड़े में मदमाती मलय गंध बांध कर

गुपचुप सन्‍नाटे में निकली अभिसारिका,

संयम की लजवंती देहरी को लांघकर 

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अंत में शिवना की ओर से जयंत शाह ने आभार व्यक्त करते हुए अतिथियों को धन्यवाद दिया । कार्यक्रम में सर्वश्री अनिल पालीवाल, राजेन्द्र शर्मा, हितेन्द्र गोस्वामी, उमेश शर्मा, चंद्रकांत दासवानी, श्रीमती जैन, नरेश तिवारी, सुनील शर्मा, राजेश सेल्वराज, सुरेंद्र ठाकुर, सनी गोस्वामी, सुधीर मालवीय सहित प्रबुध्द श्रोता उपस्थित थे ।

शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित दीपक चौरसिया मशाल के काव्‍य संग्रह 'अनुभूतियां' का विमोचन सिटी सेंटर उरई में हुआ- बुंदेलखंड टुडे से डॉ. कुमारेंद्र सिंह सेंगर की रपट साभार ।

anubhutiyan 2दीपक चौरसिया मशाल का काव्‍य संग्रह अनुभूतियां : मूल्‍य 250 रुपये, 104 पृष्‍ठ, हार्ड बाइन्डिंग, आइएसबीएन978-81-909734-0-3, प्रथम संस्‍करण 2010, प्रकाशक शिवना प्रकाशन

बुन्देलखण्ड टुडे से डॉ. कुमारेंद्र सिंह सेंगर की रपट साभार  ।
http://bundelkhandtoday.blogspot.com
http://bundelkhandtoday.blogspot.com/2010/01/blog-post_05.html
"जीवन मूल्य सास्वत होते हैं। इनमें परिवर्तन यदि होते हैं तो हमारे पहनावे, विचारों और रहन सहन के कारण होते हैं। समाज में जीवन मूल्यों का निर्धारण व्यक्ति के आचार विचार और पठन पाठन से होता है। इस प्रक्रिया में पुस्तकें अपना योगदान देतीं हैं।" उक्त विचार सामाजिक संस्था दीपशिखा द्वारा सिटी सेन्टर उरई में आज दिनांक 05 जनवरी 2010 को आयोजित विचार गोष्ठी, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में नगर निगम आयुक्त झाँसी जे0 पी0 चौरसिया ने व्यक्त किये।

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(मुख्य अतिथि - नगर निगम आयुक्त झाँसी जे0 पी0 चौरसिया)

बदलते जीवन मूल्य और साहित्य विषय पर आयोजित गोष्ठी तथा काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ के विमोचन कार्यक्रम में जे0 पी0 चौरसिया ने आगे कहा कि "समाज के बदलते परिवेश में साहित्य में भी बदलाव आते रहे और साहित्य के इसी बदलते स्वरूप से विभिन्न कालों और धाराओं का प्रतिपादन होता रहा है। वर्तमान काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ नई पीढ़ी को एक दिशा प्रदान करेगी।"

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(काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ का विमोचन कार्यक्रम)

काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ जनपद के कोंच के युवा साहित्यकार दीपक ‘मशाल’ की प्रथम कृति है। युवा साहित्यकार वर्तमान में ग्रेट-ब्रिटेन में जैव-प्रौद्योगिकी विषय में अपने शोध कार्य को पूरा करने में लगे हैं। विज्ञान पृष्ठभूमि और बिलायती परिवेश के बाद भी दीपक का हिन्दी साहित्य प्रेम कम नहीं हुआ। वर्तमान में वे इण्टरनेट पर ब्लाग के माध्यम से लेखन कार्य में रत हैं।

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(काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ की समीक्षा करते डॉ0 आदित्य कुमार)

काव्य संग्रह ‘अनुभूतियाँ’ की समीक्षा करते हुये दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ0 आदित्य कुमार ने कहा कि "दीपक की कवितायें समाज को दिशा प्रदान करने वालीं दिखाई देतीं हैं। इनकी कविताओं में आम जीवन में घटित हाने वाली घटनाओं की जो अनुभूति है उसे प्रत्येक मनुष्य एहसास तो करता है किन्तु उसे शब्द देने का कार्य बखूबी किया गया है। कविताओं को पढ़ते हुये आम जीवन के चित्र आँखों के सामने बनते दिखाई पड़ते हैं। विषय की गहराई बिम्बों और प्रतीकों का प्रयोग भाव बोध तथा तत्व विधान आदि दीपक को तथा उनकी कविताओं को प्रौढता प्रदान करते हैं जो जनपद के युवा साहित्यकारों के लिये सुखद सन्देश है।"

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(काव्य संग्रह अनुभूतियाँ के लेखक दीपक ‘मशाल’)

काव्य संग्रह अनुभूतियाँ के लेखक दीपक ‘मशाल’ ने अपनी काव्य यात्रा और इस काव्य संग्रह के बारे में बताते हुये कहा कि "मेरी कवितायें जीवन की परिस्थितियों और पीडा से उपजी हैं। मेरा प्रयास है कि जीवन की सत्यता को सरल और भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त करता रहूँ।"

संस्था दीपशिखा द्वारा इस वर्ष से सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय लोगों को सम्मानित करने की दृष्टि से दो सम्मानों-धनीराम वर्मा सामाजिक क्रांति सम्मान तथा महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान- को प्रारम्भ किया है। धनीराम वर्मा सामाजिक क्रांति सम्मान 2009 जागेश्वर दयाल 1 विकल को देने का निर्णय लिया गया है। इस अवसर पर कोंच के श्री रामबिहारी चौरसिया को महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान 2009 से अलंकृत किया गया।

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(श्री रामबिहारी चौरसिया को महेन्द्र सिंह सेंगर सामाजिक सक्रियता सम्मान 2009 से अलंकृत)

श्री चौरसिया जनपद में स्टिल फोटोग्राफी को स्थापित करने वालों में हैं। ज्ञात जानकारी के अनुसार जनपद का पहला तथा झाँसी मण्डल का दूसरा फोटो स्टूडियो नटराज स्टूडियो के नाम से उन्हीं ने खोला था। एस0 आर0 पी0 इण्टर कालेज कोंच में प्रवक्ता पद पर अपनी सेवायें देने के बाद वर्तमान में भी वे फोटोग्राफी से सम्बन्धित तकनीकी ज्ञान देते रहते हैं।

इससे पूर्व बदलते जीवन मूल्य और साहित्य विषय पर एक गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। गोष्ठी की शुरुआत तीतरा खलीलपुर महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ0 डी0 सी0 द्विवेदी के वक्तव्य से हुई। डॉ0 द्विवेदी ने कहा "सत्य घटनाओं से नहीं वरन स्थितियों से निर्मित होता है। यही सत्य जब साहित्य में प्रदर्शित होता है तो मूल्यों के रूप में मनुष्य के जीवन में दिखाई देता है। जीवन मूल्य साहित्य को विशेष गरिमा प्रदान करते हैं। वर्तमान भोगवादी संस्कृति में सत्य का निष्पादन कठिन होता प्रतीत हो रहा है। इससे मूल्यों की शाश्वतता भी परिवर्तन आने शुरू हुये हैं। इन्हीं बदलावों के कारण जिस साहित्य को समाज का दर्पण अथवा समाज का निर्माता कहा जाता रहा है उसमें भटकाव आना शुरू हुआ।"

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(वरिष्ठ अधिवक्ता यज्ञदत्त त्रिपाठी)

गोष्ठी में वरिष्ठ अधिवक्ता यज्ञदत्त त्रिपाठी ने जीवन मूल्यों को मनुष्य के विकास से जोड़ते हुये कहा कि "आधुनिक विकासवादी प्रवृति मनुष्य को जीवन मूल्यों से परे ले जा रही है। भौतिकवादी संस्कृति और भौतिकतावादी सोच ने सबसे उच्च शिखर पर बैठे मनुष्य को रसातल की ओर ले जाने का कार्य किया है। संसार के समस्त जीवों मे श्रेष्ठ जीवधारी मनुष्य अपने कृत्यों से समाज और साहित्य दोनों से दूर होता जा रहा है इस कारण से जीवन मूल्यों में बदलाव देखने को मिलते हैं।"

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(लोक संस्कृति विशेषज्ञ अयोध्या प्रसाद गुप्त कुमुद)

लोक संस्कृति विशेषज्ञ अयोध्या प्रसाद गुप्त कुमुद ने जीवन मूल्यों को लोक संस्कृति से सम्बद्ध करते हुये कहा कि "अपनी संस्कृति से विमुख होने के कारण व्यक्ति जीवन मूल्यों को विस्मृत कर रहा है। साहित्य के द्वारा समाज को दिशा देने का कार्य साहित्यकारों द्वारा किया जाता रहा है परन्तु वर्तमान साहित्य से लोक संस्कृति का लोप होना जीवन मूल्यों को स्वतः ही विघटित कर रहा है। परिवार में आपसी सामन्जस्य और मूल्यों की स्थापना को लेकर भी आज नये नये स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। जीवन मूल्यों के शाश्वत स्वरूप में इन विघटन और बदलाव का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।"

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(डॉ0 राकेश नारायण द्विवेदी)

गांधी महाविद्यालय उरई के हिन्दी विभाग के प्रवक्ता डॉ0 राकेश नारायण द्विवेदी ने जीवन के क्रिया कलापों और व्यक्ति की सक्रियता को जीवन मूल्य की परिभाषा दी उनका कहना था कि "वर्तमान में साहित्य के द्वारा जो भी रचनात्मक कार्य किये जा रहे हैं वे किसी न किसी तरह के मूल्यों का निर्माण करते हैं। उन मूल्यों को किसी भी स्थिति में जीवन मूल्य नहीं कहा जा सकता जो व्यक्ति और समाज को दिशा प्रदान न कर सकें।"

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(डॉ0 हरिमोहन पुरवार)

दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई की प्रबन्धकारिणी कमेठी के उपाध्यक्ष डॉ0 हरिमोहन पुरवार ने कहा कि "जीवन मूल्य व्यक्ति से जुडी शब्दावली है केवल साहित्य की नहीं। साहित्य से इतर व्यक्ति भी अपने क्रिया कलापों से मूल्यों का निर्माण करता है। सकारात्मक मूल्य समाज को दिशा देते हुये अपने आप में जीवन मूल्य के रूप में परिभाषित होते हैं।"

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(डॉ0 आर0 के0 गुप्ता)

दयानन्द वैदिक महाविद्यालय उरई के वनस्पति विभाग के डॉ0 आर0 के0 गुप्ता ने कहा कि "व्यक्ति के कार्य और आचरण में निरन्तर बदलाव आ रहे हैं। जीवन मूल्यों को व्यक्ति के आचरण की पवित्रता से जोड कर देखा जाना चाहिये। आचरण और कार्य की पवित्रता का विरोधाभास अपने आप ही जीवन मूल्यों का क्षरण है। जीवन मूल्यों की स्थापना के लिये व्यक्ति को अपने कार्य और आचरण में सामन्जस्य स्थापित करना चाहिये।"

इसके साथ ही गोष्ठी में डॉ0 रामप्रताप सिंह, डॉ0 सुरेन्द्र नायक, डॉ0 भास्कर अवस्थी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम में गोष्ठी का संचालन डॉ0 अनुज भदौरिया, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह का संचालन डॉ0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने तथा आभार प्रदर्शन डॉ0 राजेश पालीवाल ने किया। समारोह में संस्था के संरक्षक डॉ0 अशोक कुमार अग्रवाल, संस्था उपाध्यक्ष अलका अग्रवाल, डॉ0 सतीश चन्द्र शर्मा, डॉ0 अभयकरन सक्सेना, डॉ0 अलका रानी पुरवार, डॉ0 नीता गुप्ता, डॉ0 बबिता गुप्ता, डॉ0 नीलरतन, डॉ0 सुनीता गुप्ता, डॉ0 ममता अग्रवाल, डॉ0 वीरेन्द्र सिंह यादव, प्रकाशवीर तिवारी, डॉ0 प्रवीण सिंह जादौन, धर्मेन्द्र सिंह, सलिल तिवारी, आशीष मिश्रा, सन्त शिरोमणि, डॉ0 राजवीर, डॉ0 के0 के0 निगम, सुभाष चन्द्रा, डॉ0 मनोज श्रीवास्तव, के साथ साथ कोंच से लोकेश चौरसिया, लक्ष्मण चौरसिया, आगरा से स्वामी चौधरी सहित जनपद के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।