"वक्त की पाठशाला में एक साधक"-श्री समीर लाल ’समीर’ बिखरे मोती की समीक्षा आदरणीय देवी नागरानी जी द्वारा ।

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कलम आम इन्सान की ख़ामोशियों की ज़ुबान बन गई है. कविता लिखना एक स्वभाविक क्रिया है, शायद इसलिये कि हर इन्सान में कहीं न कहीं एक कवि, एक कलाकार, एक चित्रकार और शिल्पकार छुपा हुआ होता है. ऐसे ही रचनात्मक संभावनाओं में जब एक कवि की निशब्द सोच शब्दों का पैरहन पहन कर थिरकती है तो शब्द बोल उठते हैं. यह अहसास हू-ब-हू पाया, जब श्री समीर लाल की रचनात्मक अनुभूति ’बिखरे मोती’ से रुबरु हुई. उनकी बानगी में ज़िन्दगी के हर अनछुए पहलू को कलम की रवानगी में खूब पेश किया है-

हाथ में लेकर कलम, मैं हाले-दिल कहता गया
काव्य का निर्झर उमड़ता, आप ही बहता गया.

यह संदेश उनकी पुस्तक के आखिरी पन्ने पर कलमबद्ध है. ज़िन्दगी की किताब को उधेड़ कर बुनने का उनका आगाज़ भी पाठनीय है-

मेरी छत न जाने कहाँ गई
छांव पाने को मन मचलता है!

इन्सान का दिल भी अजब गहरा सागर है, जहाँ हर लहर मन के तट पर टकराकर बीते हुए हर पल की आहट सुना जाती है. हर तह के नीचे अंगड़ाइयां लेती हुई पीड़ा को शब्द स्पष्ट रुप में ज़ाहिर कर रहे हैं, जिनमें समोहित है उस छत के नीचे गुजारे बचपन के दिन, वो खुशी के खिलखिलाते पल, वो रुठना, वो मनाना. साथ साथ गुजरे वो क्षण यादों में साए बनकर साथ पनपते हैं. कहाँ इतना आसान होता है निकल पाना उस वादी से, उस अनकही तड़प से, जिनको समीर जी शब्द में बांधते हुए ’मां’ नामक रचना में वो कहते हैं:

वो तेरा मुझको अपनी बाहों मे भरना
माथे पे चुम्बन का टीका वो जड़ना..

जिन्दगी में कई यादें आती है. कई यादें मन के आइने में धुंधली पड़कर मिट जाती हैं, पर एक जननी से यह अलौकिक नाता जो ममता कें आंचल की छांव तले बीता, हर तपती राह पर उस शीतलता के अहसास को दिल ढूंढता रहता है. उसी अहसास की अंगड़ाइयों का दर्द समीर जी के रचनाओं का ज़ामिन बना है-

जिन्दगी, जो रंग मिले/ हर रंग से भरता गया,
वक्त की है पाठशाला/ पाठ सब पढ़ता गया...

इस पुस्तक में अपने अभिमत में हर दिल अज़ीज श्री पंकज सुबीर की पारखी नज़र इन सारगर्भित रचनाओं के गर्भ से एक पोशीदा सच को सामने लाने में सफल हुई है. उनके शब्दों में ’पीर के पर्वत की हंसी के बादलों से ढंकने की एक कोशिश है और कभी कभी हवा जब इन बादलों को इधर उधर करती है तो साफ नज़र आता है पर्वत’. माना हुआ सत्य है, ज़िन्दगी कोई फूलों की सेज तो नहीं, अहसासों का गुलदस्ता है जिसमें शामिल है धूप-छांव, गम-खुशी और उतार-चढ़ाव की ढलानें. ज़िन्दगी के इसी झूले में झूलते हुए समीर जी का सफ़र कनाडा के टोरंटो, अमरीका से लेकर हिन्दोस्तान के अपने उस घर के आंगन से लेकर हर दिल को टटोलता हुआ वो उस गांव की नुक्कड़ पर फिर यादों के झरोखे से सजीव चित्रकारी पेश कर रहा है अपनी यादगार रचना में ’मीर की गजल सा’-

सुना है वो पेड़ कट गया है/ उसी शाम माई नहीं रही
अब वहां पेड़ की जगह मॉल बनेगा/ और सड़क पार माई की कोठरी
अब सुलभ शौचालय कहलाती है,
मेरा बचपन खत्म हुआ!
कुछ बूढ़ा सा लग रहा हूँ मैं!!
मीर की गज़ल सा...!

दर्द की दहलीज़ पर आकर मन थम सा जाता है. इन रचनाओं के अन्दर के मर्म से कौन अनजान है? वही राह है, वही पथिक और आगे इन्तजार करती मंजिल भी वही-जानी सी, पहचानी सी, जिस पर सफ़र करते हुए समीर जी एक साधना के बहाव में पुरअसर शब्दावली में सुनिये क्या कह रहे हैं-

गिनता जाता हूँ मैं अपनी/ आती जाती इन सांसों को
नहीं भूल पाता हूँ फिर भी/ प्यार भरी उन बातों को
लिखता हूँ बस अब लिखने को/ लिखने जैसी बात नहीं है.

अनगिनत इन्द्रधनुषी पहुलुओं से हमें रुबरु कराते हुए हमें हर मोड़ पर वो रिश्तों की जकड़न, हालात की घुटन, मन की वेदना और तन की कैद में एक छटपटाहट का संकेत भी दे रहे हैं जो रिहाई के लिये मुंतजिर है. मानव मन की संवेदनशीलता, कोमलता और भावनात्मक उदगारों की कथा-व्यथा का एक नया आयाम प्रेषित करते हैं- ’मेरा वजूद’ और ’मौत’ नामक रचनाओं में:

मेरा वजूद एक सूखा दरख़्त / तू मेरा सहारा न ले
मेरे नसीब में तो / एक दिन गिर जाना है
मगर मैं/ तुम्हें गिरते नहीं देख सकता, प्रिये!!

एक अदभुत शैली मन में तरंगे पैदा करती हुई अपने ही शोर में फिर ’मौत’  की आहट से जाग उठती है-

उस रात नींद में धीमे से आकर/ थामा जो उसने मेरा हाथ...
और हुआ एक अदभुत अहसास/ पहली बार नींद से जागने का...

माना ज़िन्दगी हमें जिस तरह जी पाती है वैसे हम उसे नहीं जी पाते हैं, पर समीर जी के मन का परिंदा अपनी बेबाक उड़ान से जोश का रंग, देखिये किस कदर सरलता से भरता चला जा रहा है. उनकी रचना ’वियोगी सोच’ की निशब्दता कितने सरल शब्दों की बुनावट में पेश हुई है-

पूर्णिमा की चांदनी जो छत पर चढ़ रही होगी..
खत मेरी ही यादों के तब पढ़ रही होगी...

हकीकत में ये ’बिखरे मोती’ हमारे बचपन से अब तक की जी हुई जिन्दगी के अनमोम लम्हात है, जिनको सफल प्रयासों से समीर जी ने एक वजूद प्रदान किया है. ब्लॉग की दुनिया के सम्राट समीर लाल ने गद्य और पद्य पर अपनी कलम आज़माई है. अपने हृदय के मनोभावों को, उनकी जटिलताओं को सरलता से अपने गीतों, मुक्त कविता, मुक्तक, क्षणिकाओं और ग़ज़ल स्वरुप पेश किया है. मन के मंथन के उपरांत, वस्तु व शिल्प के अनोखे अक्स!!

उनकी गज़ल का मक्ता परिपक्वता में कुछ कह गया-

शब्द मोती से पिरोकर, गीत गढ़ता रह गया
पी मिलन की आस लेकर, रात जगता रह गया.

वक्त की पाठशाला के शागिर्द ’समीर’ की इबारत, पुख़्तगी से रखा गया यह पहला क़दम...आगे और आगे बढ़ता हुआ साहित्य के विस्तार में अपनी पहचान पा लेगा इसी विश्वास और शुभकामना के साथ....

शब्द मोती के पिरोकर, गीत तुमने जो गढ़ा
मुग्ध हो कर मन मेरा ’देवी’ उसे पढ़ने लगा

तुम कलम के हो सिपाही, जाना जब मोती चुने
ऐ समीर! इनमें मिलेगी दाद बनकर हर दुआ..

देवी नागरानी
न्यू जर्सी, dnangrani@gmail.com
॰॰
कृति: बिखरे मोती, लेखक: समीर लाल ’समीर’, पृष्ठ : १०४, मूल्य: रु २००/ ,
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, पी.सी. लेब, सम्राट कॉम्पलैक्स बेसमेन्ट, बस स्टैंड के सामने, सिहोर, म.प्र. ४६६ ००१

महुआ घटवारिन कहानी (आधारशिला ) पर हंस में श्री भारत भारद्वाज जी का लेख और अब नया ज्ञानोदय में उसका पुर्नप्रकाशन किया गया है ।

हंस में कहानी महुआ घटवारिन पर आलोचक श्री भारत भारद्वाज जी द्वारा विस्‍तार से चर्चा की गई है । महुआ घटवारिन को आधारशिला में यहां http://adharshilapatrika.blogspot.com/2009/10/blog-post_4043.html जाकर पढ़ा जा सकता है । हंस पर जो आलेख श्री भारत भारद्वाज जी ने दिया है वो नीचे दिया जा रहा है ।

नया ज्ञानोदय की वेब साइट www.jnanpith.net पर जाकर नवम्‍बर अंक में कहानी को पढ़ा जा सकता है । 

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बिखरे मोती का विमोचन एवं समीर लाल सम्मानित

( श्री समीर लाल जी के ब्‍लाग उड़नतश्‍तरी से साभार प्राप्‍त सामग्री )

शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित श्री समीर लाल के काव्‍य संग्रह ’बिखरे मोती’ का दीर्घ प्रतिक्षित विमोचन विगत ४ अक्टूबर, २००९ को गुरुदेव श्री राकेश खण्डेलवाल, वाशिंगटन, यू. एस.ए. के कर कमलों द्वारा गया चौहान बैन्केट हॉल, टोरंटो में समपन्न हुआ. इस अवसर पर श्री अनूप भार्गव एवं रजनी भार्गव जी, न्यू जर्सी, यू एस ए, मानोषी चटर्जी जी, शैलजा सक्सेना जी ने शिरकत की. श्रोताओं से खचाखच भरे हॉल में कार्यक्रम की शुरुवात मानोषी चटर्जी ने की. कार्यक्रम की अध्यक्षता अनूप भार्गव जी एवं संचालन श्री राकेश खण्डेलवाल जी ने किया.

कार्यक्रम के आरंभ मे प्रसिद्ध शायर फिराक गोरखपुरी जी की भांजी, श्री समीर लाल जी की दादी श्रीमति कनकलता जी ने अपने आशीर्वचन दिये एवं ’बिखरे मोती’ पर अपने विचार व्यक्त किये.

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श्री समीर लाल जी की  दादी फिराक गोरखपुरी जी की भांजी श्रीमति कनक वर्मा

तदोपरान्त मनोषी चटर्जी ने अपनी गज़ल अपनी मधुर आवाज में गाकर श्रोताओं को मुग्ध कर लिया:

आपकी आँखों में मुझ को मिल गई है ज़िंदगी
सहरा-ए-दिल में कोई बाक़ी रही ना तश्नगी

रात के बोसे का शम्मे पर असर कुछ यूँ हुआ
उम्र भर पीती रही रो-रो के उस की तीरगी

उससे मिलके एक तुम ही बस नहीं हैरां कोई
है गली-कूचा परेशां देख ऐसी सादगी

आजकल दिखने लगा है मुझको अपना अक़्स भी
आजकल क्या आइना भी कर रहा है दिल्लगी

झुक गया हूँ जब से उसके सजदे में ऐ ’दोस्त’ मैं
उम्र बन के रह गई है बस उसी की बंदगी

चूँकि कार्यक्रम के साथ ही श्री समीर लाल जी के पुत्र एवं पुत्रवधु के प्रथम गृह-आगमन का समारोह भी रखा गया था. अतः सभी कवियों एवं कवियत्रियों ने विमोचन हेतु एवं वर वधु को अपने आशीर्वचन भी काव्यात्मक प्रस्तुत किए.

मनोषी के बाद रजनी भार्गव जी ने अपना काव्यपाठ किया. पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो गया.

सुरमई शाम चुपके से सुरमई हो गयी है शाम
रात ने सर रख दिया है काँधे पर
तारों ने बो दिये हैं चन्द्रकिरण से मनके वीराने में
धवल, चमकीली चाँद की निबोली
अटकी हुई है नीम की टहनी पर
नीचे गिरी तो बाजूबंद सी खुल जाएगी
सुरमई शाम
अनुपम और प्रगति के अनुराग
में ढल जाएगी।

उसके बाद शैलजा सक्सेना जी कविता ’सात फेरे’ ने सभी को अभिभूत कर दिया.

दो-दो खुशियाँ एक साथ हैं
घर और कलम प्रफुल्लित
इसी तरह से बढ़े वाटिका
गीत पुष्प हों प्रमुदित॥

अनुपम -प्रगति के लिये....

मधुमय जीवन बने तुम्हारा
स्वप्न सुगंधित सब हो
रहे आस्था संबंध में
चंदन-चाँदनी मन हो॥

-*-
सात फेरे

डॉ. शैलजा सक्सेना

सात फेरे लिए तुमने
सात फेरे लिए मैंने
मन की सेज पर
हर रात, सुहाग रात।

तुम्हारे पुरुषार्थ ने
मेरी कल्पना की कोख में
सपनों का बीज बोया
और हम विश्वास का फल लिए
चढ़ते चले आए जीवन की कठिन सीढ़ियाँ
कुछ फूलों से लदी
कुछ रपटन से भरी
फिसलने को हुए तुम तो
हाथ थामा मैंने
गिरने को हुई मैं तो
हाथ पकड़ा तुमने।

सात फेरे लिए तुमने.......

सुहाग का सोना
तन से ज़्यादा रचा मन पर।
समय झरता रहा
हरसिंगार सा हमारी देहों पर
सोख ली वह गंध स्वयं में
गंध बढ़ रही है तुम्हारी
गंध बढ़ रही है मेरी

झील की लहरों सी
मुस्कान उठती है तुम्हारे होंठों से
और मेरी आँखों का सूरज छूने की होड़ करती है
साँसों में हवन-धूम भरती है
उस दिन जो लिए थे सप्तपदी-वचन
भूलने को हुए तुम तो
याद दिलाए मैंने
भूलने को हुई मैं
तो याद दिलाए तुमने।

सात फेरे लिए तुमने
सात फेरे लिए मैंने
मन की सेज पर
हर रात, सुहाग रात।।

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उनके बाद अनूप भार्गव जी ने अपने काव्यपाठ से समा बाँधा.

१.
प्रणय की प्रेरणा तुम हो
विरह की वेदना तुम हो
निगाहों में तुम्ही तुम हो
समय की चेतना तुम हो ।

२.
तृप्ति का अहसास तुम हो
बिन बुझी सी प्यास तुम हो
मौत से अब डर नहीं है
ज़िन्दगी की आस तुम हो ।

३.
सपनों का अध्याय तुम्ही हो
फ़ूलों का पर्याय तुम्ही हो
एक पंक्ति में अगर कहूँ तो
जीवन का अभिप्राय तुम्ही हो ।

४.
सुख दुख की हर आशा तुम हो
चुम्बन की अभिलाशा तुम हो
मौत के आगे जाने क्या हो
जीवन की परिभाषा तुम हो ।

५.
ज़िन्दगी को अर्थ दे दो
इक नया सन्दर्भ दे दो
दूर कब तक यूँ रहोगी
नेह का सम्पर्क दे दो ।

अनूप जी के बाद राकेश खण्डेलवाल जी ने अपना काव्यपाठ कर पुस्तक का विमोचन किया एवं शिवना प्रकाशन की ओर से पुस्तक की प्रथम प्रति श्री समीर लाल जी की पुत्र वधु को भेंट की.

शुभ हो प्रणय पर्व हम सब मिल कर नूतन हर्ष संजोयें
अभिनन्दन के भाव आज हम भेंट कर रहे हैं स्वीकारो
भावी जीवन के सपनों की मधुपूरित खुशियों से
विविध रूप में र~मगा तुम्हारा वर्त्तमान सजाता हो

साथ ही अनूप और रजनी भार्गव, विकास और शैलजा सक्सेना, मानोशी छटर्जी और राकेश जी की ओर से राकेश जी ने वर वधु के लिए मंगलकामना करते हुए गीत प्रेषित किया:

सदा रहे मंगलमय जीवन
शुभ आशीष तुम्हें देते हैं
तुम्हें मुबारक गुल औ’ कलियाँ
रस भीगे दिन रस की रतियाँ
रसिक सुबह हो, शाम सुगन्धी
गगन बिखेरे रस मकरन्दी
जिसमें सदा खिलें नवकलियाँ
ऐसा चमन तुम्हें देते हैं
जो छू लें अन्त:स्तल तल को
घुटनलिप्त नभ के मंडल को
नयनों के बेसुध काजल को
हियरा के उड़ते आँचल को
फिर उच्चार करें गीता सा
ऐसे अधर तुम्हें देते हैं
जो बिखरे तिनकों को जोड़ें
मांझी को साहिल तक छोड़ें
अन्तर्मन को दिशा दिखायें
पथ में नूतन सरगम गायें
जो उड़ छू लें मंज़िल का सर
ऐसे पंख तुम्हें देते हैं
जो सपनों की अँगनाई में
मन की गुंजित शहनाई में
उषा की मॄदु अँगड़ाई में
घुल जाते हैं परछाईं में
इन्द्रधनुष नित बन कर सँवरें
ऐसे पंख तुम्हें देते हैं.
सदा रहे मंगलमय जीवन
शुभ आशीष तुम्हें देते हैं.

समीर लाल सम्मानित:

इसी अवसर पर वाशिंगटन हिन्दी समिति यू एस ए द्वारा हिन्दी भाषा एवं हिन्दी चिट्ठाकारी की विशिष्ट सेवा के लिए श्री समीर लाल को ‘साहित्य गौरव’ के सम्मान से विभूषित किया गया एवं शिवना प्रकाशन, सिहोर के द्वारा से ’शिवना सारस्वत सम्मान’ से अलंकृत किया गया. श्री अनूप भार्गव जी ने इस मौके पर दोनों सम्मान पत्रों का अंग्रेजी मे अनुवाद कर उन कनेडियन मेहमानों को सुनाया जिन्हें हिन्दी नहीं आती थी.

श्री नारायण कासट जी,  श्री रमेश हटीला और श्री पंकज सुबीर को इस मौके पर विशेष रुप से याद किया गया जिनके अथक प्रयास से यह ’बिखरे मोती’ का संकलन मूर्त रुप ले पाया.

साहित्य गौरव
शिवना सारस्वत सम्मान

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इसके बाद श्री समीर लाल जी द्वारा सभी के आभार प्रदर्शन एवं काव्यपाठ के बाद विमोचन का कार्यक्रम समाप्त हुआ ।

श्री समीर लाल जी  द्वारा पढ़ी गई रचना:

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चाँद गर रुसवा हो जाये तो फिर क्या होगा
रात थक कर सो जाये तो फिर क्या होगा.

यूँ मैं लबों पर, मुस्कान लिए फिरता हूँ
आँख ही मेरी रो जाये तो फिर क्या होगा.

यों तो मिल कर रहता हूँ सबके साथ में
नफरत अगर कोई बो जाये तो फिर क्या होगा.

कहने मैं निकला हूँ हाल ए दिल अपना
अल्फाज़ कहीं खो जाये तो फिर क्या होगा.

किस्मत की लकीरें हैं हाथों में जो अपने
आंसू उन्हें धो जाये तो फिर क्या होगा.

बहुत अरमां से बनाया था आशियां अपना
बंट टुकड़े में दो जाये तो फिर क्या होगा.

ये उड़ के चला तो है घर जाने को ’समीर;
हवा ये पश्चिम को जाये तो फिर क्या होगा.

समीर लाल जी का काव्‍य संग्रह बिखरे मोती प्राप्‍त करने हेतु ...................

कई सारे लोगों के मेल मुझे भी प्राप्‍त हुए हैं और समीर जी को भी प्राप्‍त हो रहे हैं । दरअसल में समीर लाल जी की लोकप्रियता जिस प्रकार ब्‍लाग जगत में है उसको देखते हुए ये तो होना ही था । पूर्व में श्री समीर लाल जी ने इसका विमोचन वहीं कनाडा में ही करने का निर्णय लिया था लेकिन फिर बाद में उसका एक अंतरिम विमोचन उन्‍होंने जबलपुर में संपन्‍न करने का विचारा और दो दिन पूर्व उसका अंतरिम विमोचन जबलपुर की ब्‍लागर्स मीट http://sanjusandesha.blogspot.com/ में सम्‍पन्‍न हुआ ।

समीर जी का ये काव्‍य संग्रह उनके एक नये रूप को सामने लाता है । एक ऐसा रूप जो कि गहन है गम्‍भीर है । जिसमें कहीं हास्‍य नहीं है । ये पुस्‍तक उनकी छंदमुक्‍त कविताओं, गीतों, ग़ज़लों, मुक्‍तकों और क्षणिकाओं का संचय है । पुस्‍तक की भूमिका लिखी है वरिष्‍ठ गीतकार त्रय सर्वश्री राकेश खण्‍डेलवाल जी, कुंअर बेचैन जी तथा रमेश हठीला जी ने । पुस्‍तक का आवरण डिजाइन किया है छ‍बी मीडिया के सर्वश्री संजय तथा पंकज जी बैंगाणी जी । ये तो बताने की आवश्‍यकता नहीं होनी चाहिये कि शिवना प्रकाशन द्वारा इसे प्रकाशित किया गया है । पुस्‍तक सजिल्‍द संस्‍करण में है । पुस्‍तक का मूल्‍य 200 रुपये भारतीय मूल्‍य तथा 15 यूएस डालर है । पुस्‍तक को श्री समीर लाल जी ने अपनी स्‍वर्गीय माताजी को समर्पित किया है । पुस्‍तक में श्री समीर लाल जी का जो रंग देखने को मिलता है वो एक क्षण को ये सोचने पर मजबूर करता है कि क्‍या ये वहीं समीर लाल जी हैं उड़नतश्‍तरी वाले । पुस्‍तक में शामिल ग़ज़लें तथा मुक्‍तक श्री समीर जी की सामयिक दृष्टि को बताते हैं ।

बिखरे मोती का मूल्‍य 200 रुपये है तथा पोस्‍टल चार्जेस 25 रुपये भारत में कहीं भी के लिये हैं । इस प्रकार कुल 225 रुपये डाक द्वारा मंगवाने हेतु है । इस हेतु या तो भुगतान पंकज सुबीर के नाम से  पंकज सुबीर, पी सी लैब, सम्राट कॉम्‍प्‍लैक्‍स बेसमेंट, न्‍यू बस स्‍टेंड, सीहोर, मध्‍यप्रदेश 466001 मोबाइल 09977855399 पर भेजें अथवा यदि इंटरनेट बैंकिंग या कोर बैंकिंग से भेजना चाहें तो   केवल एक मेल subeerin@gmail.com पर कर दें ताकि आपको खाता क्रमांक भेजा जा सके । पुस्‍तक कोरियर द्वारा भेजी जायेगी तथा मिलने में एक दो दिन का समय लगेगा ।

समीर लाल जी का काव्‍य संग्रह बिखरे मोती, उड़नतश्‍तरी का दूसरा रूप जो गहन और गम्‍भीर है । बिखरे मोती प्रकाशित अब विमोचन की प्रतीक्षा कीजिये ।

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समीर जी की पुस्‍तक पे काम करना मुश्किल इसलिये था कि वे भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं । वे व्‍यंग्‍य भी लिखते हैं और हास्‍य भी, गीत भी लिखते हैं और ग़ज़ल भी, मुक्‍तक भी लिखते हैं और सोनेट भी ।  तिस पर ये भी कि कोई भी विधा में कमजोर नहीं हैं वे । जब पांडुलिपि को लेकर शिवना प्रकाशन के  श्री नारायण कासट जी, श्री रमेश हठीला जी, श्री हरिओम शर्मा जी के साथ बैठकर चर्चा हो रही थी तो सभी एकमत थे इस बात को लेकर कि संग्रह में कोई एक ही रंग जाना चाहिये क्‍योंकि अलग अलग विधाएं एक साथ देने पर किसी के साथ भी न्‍याय नहीं हो पाता है । और सभी को श्री समीर लाल जी की गम्‍भीर कविताएं अधिक पसंद आ रही थीं । उसके पीछे एक कारण ये भी है कि जब बात पढ़ने की आती है तो हास्‍य से जियादह गम्‍भीर विषय ही लोगों को पसंद आते हैं । खैर तो समीर जी से बात की गई और उन्‍होंने एक लाइन का मेल किया 'पंचों की राय सर आंखों पर' । तो निर्णय ये हुआ कि बिखरे मोती में समीर जी के गम्‍भीर रूप का ही दर्शन होगा । मेरे विचार में विश्‍व की महानतम फिल्‍म अगर कोई है तो वो है 'मेरा नाम जोकर' उस फिल्‍म का एक दोष बस ये ही था कि वो अपने समय से पहले आ गई और उसे बनाने वाला एक भारतीय था, अन्‍यथा तो आस्‍करों जैसे पुरुस्‍कारों से भी ऊपर थी वो फिल्‍म । यहां पर अचानक मेरा नाम जोकर की बात इसलिये कि उस फिल्‍म में भी यही बताया है कि किस प्रकार अंदर से रो रहा आदमी ऊपर से लोगों को हंसाने का प्रयास करता है । समीर जी के साथ भी वहीं है, उनकी बेर वाली माई की कविता में जो अंत में मीर की ग़ज़ल का उदाहरण आया है वो स्‍तम्भित करने वाला है । बिखरे मोती में समीर जी के गीत हैं, छंदमुक्‍त कविताएं हैं, ग़ज़लें हैं, मुक्‍तक हैं और क्षणिकाएं हैं । पुस्‍तक का अत्‍यंत सुंदर आवरण पृष्‍ठ छबी मीडिया के श्री पंकज बैंगाणी द्वारा किया गया है बानगी आप भी देखें

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पुस्‍तक की भुमिका वरिष्‍ठ कवि श्रद्धेय श्री कुंवर बेचैन साहब ने लिखी है वे अपने समीक्षा में लिखते हैं समीर लाल मूलत: प्रेम के कवि हैं । पहले तो मैं ये पंक्तियां पढ़कर चकराया कि कुंवर साहब ऐसा क्‍यों लिख रहे हैं । फिर मुझे अपने उस्‍ताद की बात याद आई कि बड़े लोग यदि कुछ कह रहे हैं तो किसी न किसी कारण से ही कह रहे हैं । मैंने कुंवर जी की बात के संदर्भ में पुन: समीर जी की कविताएं देखीं तो मुझे हर कहीं प्रेम नजर आया । पूरी तरह से समर्पित प्रेम की एक बानगी देखिये

मेरा वजूद एक सूखा दरख्‍़त

तू मेरा सहारा न ले,

मेरे नसीब में तो

एक दिन गिर जाना है

मगर मैं

तुझको गिरते हुए नहीं देख सकता प्रिये

राकेश खण्‍डेलवाल जी ने अपनी भूमिका में लिखा है कि समीर लाल जी के दर्शन की गहराई समझने की कोशिश करता हुआ आम व्‍यक्ति भौंचक्‍का रहा जाता है । सच कहा है राकेश जी ने क्‍योंकि हास्‍य के परदे में छुपा कवि जब कहता है

वो हँस कर

बस यह एहसास दिलाता है

वो जिन्‍दा है अभी

कौन न रहेगा भौंचक्‍का सा ऐसी कविता को पढ़कर या सुनकर ।

श्री रमेश हठीला जी ने लिखा है कि नेट भर जिस प्रकार उड़नतश्‍तरी लोकप्रिय हुई उसी प्रकार साहित्‍य में बिखरे मोती उसी कहानी को दोहराने जा रही है ।