प्रकाशक : शिवना प्रकाशन, आइएसबीएन नंबर 978-81-909734-2-7 मूल्य 250 रुपये
आलेख - श्री राकेश खंडेलवाल जी कवयित्री मोनिका हठीला
रात के आसमान में बिखरती हुई चाँदनी को पीकर कुछ सितारे लड़खड़ाते हुए पिघलते रहे रात भर। कुछ पिघले हुए सितारों की बूँदें टपकती हुई रजनीगन्धा के पत्तों पर आ गिरीं। भोर की पहली किरण ने जब उनको सहलाया तो निशिगन्धा के फूलों की साँसों को चूम कर, किरण के सोनहलेपन को अपने आप में समेट कर वे हवा की एक झालरी की उँगलियाँ पकड़े हुए चल पड़ीं चहल कदमियाँ करती हुईं।
चलते चलते हवाओं के साथ बहती हुई इन खुशबुओं की तरंगों को सीहोर का रास्ता मिल गया और वहाँ के पथ पर चलते हुए रास्ते इनको स्वत: ही ले गये मोनिका हठीला की कलम की नोक पर। उस कलम के मोहक स्पर्श से सँवर कर ये खुशबुएँ फिर निकल पड़ीं टहलती हुई और फिर विश्राम का नाम ही नहीं लिया और अब भी यह खुशबू टहलते हुए चल रही है।
यद्यपि मुझे मोनिका से मिलने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ परन्तु एक कवि या कवयित्री की पहचान तो उसके शब्दों से ही होती है। भावनाएँ नयी नहीं होतीं आदिकाल से मानव मन की संवेदनाएँ और भावनाएँ बदली नहीं हैं और न ही बदलेंगी। बदलता है तो केवल उन्हें शब्दों में पिरोने का कौशल, लक्षणा और व्यंजना का श्रंगार और अपनी बात को नये ढंग से कहने की कला।
मोनिका हठीला की रचनाओं में यह कौशल भली भाँति उभर कर आया है। सहज सीधे साधे शब्दों में बिना किसी आडंबर के अपनी बात कह पाने का जो हुनर उनकी रचनाओं में दृष्टव्य है वहाँ तक पहुँचने के लिये कड़ी साधना और लगन की आवश्यकता होती है। पारिवारिक जीवन के दायित्व में रहते हुए इस कौशल को खूबसूरती से निभाये रखना मोनिका की रचनाओं में दृष्टिगोचर होता है । अपने लेखन का जिक्र करते हुए मोनिका कहती हैं-
कलियों के मधुबन से
गीतों के छन्द चुने
सिन्दूरी क्षितिजों पर
स्वप्निल अनुबन्ध बुने
घिर आई रंग भरी शाम
एक गीत और तेरे नाम
तो एक और और एक और की श्रंखला बढ़ती रहती है और कभी विश्रान्ति के पल तलाश नहीं करती।
मन ऑंगन में करे बसेरा सुधियों का सन्यासी
मौसम का बंजारा गाये गीत तुम्हारे नाम
और तुम्हारे नाम लिखते लिखते जब यह कलम अपने आस पास देखती है तो व्यव्स्था की अस्तव्यस्तता और टूटते हुए सपनों के ढेरों से जुड़े हुए राजनीति से अछूती नहीं रह पाती
वे लिखती हैं-
सारे कौए ओढ़ के चादर आज बन गये बगुले..
अंधियारे ने रहन रख लिया आज उजाला है.
तो कवि हृदय की पीड़ा का आक्रोश सामने आ जाता है और अपनी आवाज़ में और आवाजों को सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित करता प्रतीत होता है।
विरह के पलों के चित्रण में मोनिका ने अपनी अनूठी अभिव्यक्ति दी है-
तोता चुप, मैना उदास है, गुमसुम सोनचिरैया
कोयल भूल गई अपना सुर, भँवरा लगे ततैया
टूट गया पागल मीरा की साँसों का इकतारा
तेरे बिना मीत सूना है घर ऑंगन चौबारा
या फिर जब आंचलिक भाषा में परम्परागत चली आ रही गाथाओं और किंवदन्तियों को अपने भावों के साथ जोड़कर वे खूबसूरती से प्रस्तुत करती हैं तो उनकी कलम को बरबस ही नमन करना होता है-
विधना तू बावरो किने दी थारे कलम
विरहा लिख्यौ भाग म्हारे, आई न थारे सरम
हो पंख देता थे म्हारे उड़के आती द्वारे
मोनिका न केवल गीतों को अपने शब्दों से सजाती रही हैं बल्कि ग़ज़लों को भी उन्होंने नये लिबास पहनाये हैं। छोटी बहर हो या लम्बी, मोनिका ने अपनी बात अपने ही अंदाज़ में बयाँ की हैं। उनकी ग़ज़लों के चन्द अशआर उध्दृत किये बिना यह जिक्र अधूरा रह जायेगा। कुछ शेर खास तौर से
सुबह रोती मिली चाँदनी
रात जिससे सुहानी हुई
शबरी के राम एक न एक दिन तो आयेंगे
पलकों को पाँवड़ों सा बिछाये हुए हैं हम
लिल्लाह ऐसे देख कर मैला न कीजिये
बेदाग चाँदनी में नहाये हुए हैं हम
जिसने तुम्हारी राह में काँटे बिछाये थे
वो ही तुम्हारी ऑंख का तारा है इन दिनों
आप के हुक्म पर होंठ सी तो लिये
गीत पायल सुनाये तो मैं क्या करूँ
और
मैने जाना जबसे तुमको
खुद से ही अंजान हो गई.
मैने केवल कुछ ही अशआर इसलिये चुने कि अगर पसन्द के सभी शेरों का जिक्र यहाँ करता तो कई ग़ज़लें पूरी की पूरी यहाँ लिखना पड़ जातीं। गीत, ग़ज़लों के साथ साथ मुक्तकों में भी मोनिका ने अपनी शैली को एक अलग पहचान दी है। मोनिका के मुक्तकों ने जहाँ भारत के कवि सम्मेलनों के हर मंच पर अपनी छाप छोड़ी है वहीं मूर्धन्य साहित्यकारों और कवियों से भी वाहवाही बटोरी है। उनका हर मुक्तक एक दूसरे से बढ़ कर है।
मुझे अत्यंत हर्ष और गर्व का अनुभव हो रहा है कि मोनिका के गीत, ग़ज़लों और मुक्तकों को पढ़ने का प्रथम अवसर मुझे प्राप्त हुआ और उनकी रचनाओं के सन्दर्भ में मैं कुछ कह सका।
खुशबू टहलती रही के पश्चात आगामी संकलनों की सभी काव्य प्रेमियों को प्रतीक्षा रहेगी ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है। मोनिका को लेखन के नये आयाम छूने की शुभकामनाओं के साथ आशीष ।
राकेश खंडेलवाल
14205-पंच स्ट्रीट
सिल्वर स्प्रिंग , मैरीलेंड
( यू. एस. ए )
301-929-0508
11 comments:
आदरणीय राजेश खंडेलवाल जी के शब्द बता रहे हैं की यह काव्य संग्रह कोमल भावनाओं का सजीव चित्रण है.
एक खुशबू टहलती रही, मोनिका हठीला जी क इस पुस्तक के लिए बहुत बधाई.
कवयित्री मोनिका हठीला
Shat Shat Badhayi
रात के आसमान में बिखरती हुई चाँदनी को पीकर कुछ सितारे लड़खड़ाते हुए पिघलते रहे रात भर।
अजब इसरार है शब्दों का, उनसे झांकती खुशबुओं का जो कविवे राकेश जी की समालोचना से और निखर कर सामने आई है. मेरी दिली शुभकामनायें कबूल हो.
"मैने केवल कुछ ही अशआर इसलिये चुने कि अगर पसन्द के सभी शेरों का जिक्र यहाँ करता तो कई ग़ज़लें पूरी की पूरी यहाँ लिखना पड़ जातीं।
राकेश जी ने जो समीक्षात्मक कोण छुए हैं वे पुस्तक को पारदर्शौ करने में समक्ष है..और साथ ही में कूछ बाकी पढ़ने की ललक जाग उठी है....यहाँ मैं शिवना प्रकाशन को सहित बधाई के साथ साथ शुभकामनाएं जरूर देना चाहूंगी. तभीयत से पत्थर उछालने के सफल प्रयास के लिये.
देवी नागरानी
और पंकज आचार्य जी के लिए सन्देश,
हम जैसे पाठकों के लिए इसका प्रचार मूल्य कितना है.
मन की कोमल भावनाएँ जैसे चहलकदमी ही कर रही हों , धन्यवाद पढ़वाने के लिए | कोई कैसी भी समीक्षा करता होगा , मगर हम तो समझते हैं कि अगर तारीफ़ के काबिल है तो प्रशंसा जरुर करो , बस , जिसने दिल के तार छुए वो वाह वाही के काबिल है |
मन ऑंगन में करे बसेरा सुधियों का सन्यासी
मौसम का बंजारा गाये गीत तुम्हारे नाम
bahut sundar
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
जिस किताब का आलेख इतना काव्यात्मक है वो किताब कैसी होगी अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है...मोनिका जी की रचनाएँ चमत्कृत करती हैं...पध्य की हर विधा में उनकी लेखनी ने नए आयाम स्थापित किये लगते हैं...उन्हें बहत बहुत बधाई...
नीरज
राकेश जी के द्वारा रचित इस आलेख को पढ़ने के बाद और इन चन्द छंदों को पढ़ लेने के उपरान्त कौन साहित्य प्रेमी इस पुस्तक को न प्राप्त करना चाहेगा.
कृप्या सूचित करें कि इसे कैसे प्राप्त किया जाये.
मोनिका जी को बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.
गुरूदेव से निवेदन है कि शिवना की पूरी प्रकाशन-सूची उपलब्ध कराई जाये। लिस्ट तो बना लूं सारी मनभावन पुस्तकों की, आर्डर करने से पहले।
प्रसिद्द गीतकार श्री राकेश खंडेलवाल जी ने जिस तरह से मोनिका जी की पुस्तक
एक खुश्बू टहलती रही को अपने शब्दों से दुलारा है वो अपने आप में काबलियत की बात है और ऐसे श्रेष्ठ जनों से सिख्नो को यही मिलता है ... एक लाइन कहूंगा के के ये फूल हैं और उससे बस खुश्बू ही आ सकती है और वही खुश्बू टहल रही है मोनिका जी की लेखनी से उनके शब्दों में ...
मोनिका जी खुद में एक अछि कवईत्री हैं जो सच में शब्दों को खुश्बू की तरह बिखेरती हैं ...
उनके बारे में गुरु देव से बहुत कुछ सुन चुका हूँ अब तो बस दिली खाहिश है इस खुश्बू से जो टहल रही है से रूबरू होने के लिए...
बहुत बहुत बधाई मोनिका जी उनकी पुस्तक के लिए और दिल बेहद खुश है शिवना प्रकाशन को हर दिन एक सीढ़ी आसमान की तरफ चढ़ता देख कर ... शिवना प्रकाशन को भी बहुत बहुत बधाई ...
अर्श
शिवना प्रकाशन को इस अनमोल काव्य संग्रह के प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई. मोनिका जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाये.
regards
सुश्री कवयित्री मोनिका हठीला जी को मेरी हार्दिक बधाई
...ईश्वर करें के इनके मधुभारे शब्दों के सुगंध दूर दूर तक फैले ...
शब्दों के जादूगर हैं हमारे रसपूर्ण कवि श्री राकेश जी उन्ह्होंने क्या खूबसूरत समान बांधा है ..वाह !
शिवना प्रकाशन के अमूओली साहित्यिक योगदान में एक और चमकता कदम आ मिला ..यशो गाथा जारी रहे ..
साहित्य आकाश के सभी साथियों के प्रति, स्नेह व आदर प्रेषित है,
- लावण्या
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