कहानियाँ जिंदगी के हर मोड़ पर बिखरी हुईं हैं। तलाश रहती है उन्हें किसी पारखी नार की जो उन्हें चुन सके और करीने से शब्दों का जामा पहना कर उन्हें सजा सके। जिंदगी के सफर में चलते हुए हर राही के पाँवों को चूमने के लिए बेकरार ये कहानियाँ उसके आगे पीछे दाएँ बाएँ और ऊपर नीचे हर ओर हैं और अधिकाँश मुसांफिर इनसे अनजाने अपनी धुन में अनदेखी मंजि़ल की ओर दौड़ते रहते हैं।
जिंदगी के कारवाँ में कुछ राही ऐसे भी होते हैं जिनकी हर बात अलग होती है। उनका अपना नारिया और हर चीज को हर जाविये से देखने की खुसूसियत रहती है। समीर एक ऐसे ही मुसांफिर हैं जो जिंदगी के हर कदम से उठा उठा कर कहानियाँ चुनते हैं और बड़ी खूबसूरती से उन्हें सबके सामने पेश करते हैं। कहानियों का ताना बाना बुनने में जो महारत समीर को हासिल है उसे शब्दों में बयान करना असम्भव है। सीधे साधे शब्दों में वे पाठक को अपने साथ सफर पर ले चलते हैं और बड़ी सहजता से गंभीर मसलों और मुद्दों पर अपनी बारीकी का अंदाज़ पाठक को इस तरह बताते हैं की सिवाय वाह और आह कहने के उसके पास कोई चारा नहीं रहता।
प्रस्तुत कथानक को पढ़ते पढ़ते यकायक महसूस नहीं होता और फिर यकायक महसूस भी होता है की आज के समाज के मुद्दे, बाल मादूरी, समलैंगिकता, पारिवारिक वातावरण, सामंजस्य, विचलित मनोवृत्तियाँ और ओढ़ी हुई कृत्रिमाताएँ किस कदर सामने आती हैं और उन्हें किस तरह प्रस्तुत लिया जाता है की वे कहीं तो जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन जाती हैं और कहीं समाज के माथे पर लगे एक काले दांग की तरह नार आती हैं।
समीर की इस अद्भुत शैली के सभी पाठक कायल रहे हैं। समीर के इस कथानक से भी उन्हें अपेक्षाकृत अधिक संतोष मिलेगा ऐसा मेरा विश्वास है। मैंने जब इसे पढ़ना शुरू किया तो एक ही बैठक में पूरा पढ़ने के लिए मजबूर हो गया क्योंकि कहानी इस कदर बहा कर आपको अपने साथ ले चलती है की इसे बीच में छोड़ना संभव ही नहीं है। समीर से आगे भी और विस्तृत कथाओं की अपेक्षा है। शुभकामनाओं सहित।
-राकेश खंडेलवाल
1 comments:
बिलकुल आपसे सहमत हूँ
मैने भी पडःएए ये पुस्तक हैरानी होती है उनकी संवेदनशीलता पर। धन्यवाद।
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