( श्री समीर लाल जी के ब्लाग उड़नतश्तरी से साभार प्राप्त सामग्री )
शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित श्री समीर लाल के काव्य संग्रह ’बिखरे मोती’ का दीर्घ प्रतिक्षित विमोचन विगत ४ अक्टूबर, २००९ को गुरुदेव श्री राकेश खण्डेलवाल, वाशिंगटन, यू. एस.ए. के कर कमलों द्वारा गया चौहान बैन्केट हॉल, टोरंटो में समपन्न हुआ. इस अवसर पर श्री अनूप भार्गव एवं रजनी भार्गव जी, न्यू जर्सी, यू एस ए, मानोषी चटर्जी जी, शैलजा सक्सेना जी ने शिरकत की. श्रोताओं से खचाखच भरे हॉल में कार्यक्रम की शुरुवात मानोषी चटर्जी ने की. कार्यक्रम की अध्यक्षता अनूप भार्गव जी एवं संचालन श्री राकेश खण्डेलवाल जी ने किया.
कार्यक्रम के आरंभ मे प्रसिद्ध शायर फिराक गोरखपुरी जी की भांजी, श्री समीर लाल जी की दादी श्रीमति कनकलता जी ने अपने आशीर्वचन दिये एवं ’बिखरे मोती’ पर अपने विचार व्यक्त किये.
श्री समीर लाल जी की दादी फिराक गोरखपुरी जी की भांजी श्रीमति कनक वर्मा
तदोपरान्त मनोषी चटर्जी ने अपनी गज़ल अपनी मधुर आवाज में गाकर श्रोताओं को मुग्ध कर लिया:
आपकी आँखों में मुझ को मिल गई है ज़िंदगी
सहरा-ए-दिल में कोई बाक़ी रही ना तश्नगी
रात के बोसे का शम्मे पर असर कुछ यूँ हुआ
उम्र भर पीती रही रो-रो के उस की तीरगी
उससे मिलके एक तुम ही बस नहीं हैरां कोई
है गली-कूचा परेशां देख ऐसी सादगी
आजकल दिखने लगा है मुझको अपना अक़्स भी
आजकल क्या आइना भी कर रहा है दिल्लगी
झुक गया हूँ जब से उसके सजदे में ऐ ’दोस्त’ मैं
उम्र बन के रह गई है बस उसी की बंदगी
चूँकि कार्यक्रम के साथ ही श्री समीर लाल जी के पुत्र एवं पुत्रवधु के प्रथम गृह-आगमन का समारोह भी रखा गया था. अतः सभी कवियों एवं कवियत्रियों ने विमोचन हेतु एवं वर वधु को अपने आशीर्वचन भी काव्यात्मक प्रस्तुत किए.
मनोषी के बाद रजनी भार्गव जी ने अपना काव्यपाठ किया. पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो गया.
सुरमई शाम चुपके से सुरमई हो गयी है शाम
रात ने सर रख दिया है काँधे पर
तारों ने बो दिये हैं चन्द्रकिरण से मनके वीराने में
धवल, चमकीली चाँद की निबोली
अटकी हुई है नीम की टहनी पर
नीचे गिरी तो बाजूबंद सी खुल जाएगी
सुरमई शाम
अनुपम और प्रगति के अनुराग
में ढल जाएगी।
उसके बाद शैलजा सक्सेना जी कविता ’सात फेरे’ ने सभी को अभिभूत कर दिया.
दो-दो खुशियाँ एक साथ हैं
घर और कलम प्रफुल्लित
इसी तरह से बढ़े वाटिका
गीत पुष्प हों प्रमुदित॥
अनुपम -प्रगति के लिये....
मधुमय जीवन बने तुम्हारा
स्वप्न सुगंधित सब हो
रहे आस्था संबंध में
चंदन-चाँदनी मन हो॥
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सात फेरे
सात फेरे लिए तुमने
सात फेरे लिए मैंने
मन की सेज पर
हर रात, सुहाग रात।
तुम्हारे पुरुषार्थ ने
मेरी कल्पना की कोख में
सपनों का बीज बोया
और हम विश्वास का फल लिए
चढ़ते चले आए जीवन की कठिन सीढ़ियाँ
कुछ फूलों से लदी
कुछ रपटन से भरी
फिसलने को हुए तुम तो
हाथ थामा मैंने
गिरने को हुई मैं तो
हाथ पकड़ा तुमने।
सात फेरे लिए तुमने.......
सुहाग का सोना
तन से ज़्यादा रचा मन पर।
समय झरता रहा
हरसिंगार सा हमारी देहों पर
सोख ली वह गंध स्वयं में
गंध बढ़ रही है तुम्हारी
गंध बढ़ रही है मेरी
झील की लहरों सी
मुस्कान उठती है तुम्हारे होंठों से
और मेरी आँखों का सूरज छूने की होड़ करती है
साँसों में हवन-धूम भरती है
उस दिन जो लिए थे सप्तपदी-वचन
भूलने को हुए तुम तो
याद दिलाए मैंने
भूलने को हुई मैं
तो याद दिलाए तुमने।
सात फेरे लिए तुमने
सात फेरे लिए मैंने
मन की सेज पर
हर रात, सुहाग रात।।
उनके बाद अनूप भार्गव जी ने अपने काव्यपाठ से समा बाँधा.
१.
प्रणय की प्रेरणा तुम हो
विरह की वेदना तुम हो
निगाहों में तुम्ही तुम हो
समय की चेतना तुम हो ।
२.
तृप्ति का अहसास तुम हो
बिन बुझी सी प्यास तुम हो
मौत से अब डर नहीं है
ज़िन्दगी की आस तुम हो ।
३.
सपनों का अध्याय तुम्ही हो
फ़ूलों का पर्याय तुम्ही हो
एक पंक्ति में अगर कहूँ तो
जीवन का अभिप्राय तुम्ही हो ।
४.
सुख दुख की हर आशा तुम हो
चुम्बन की अभिलाशा तुम हो
मौत के आगे जाने क्या हो
जीवन की परिभाषा तुम हो ।
५.
ज़िन्दगी को अर्थ दे दो
इक नया सन्दर्भ दे दो
दूर कब तक यूँ रहोगी
नेह का सम्पर्क दे दो ।
अनूप जी के बाद राकेश खण्डेलवाल जी ने अपना काव्यपाठ कर पुस्तक का विमोचन किया एवं शिवना प्रकाशन की ओर से पुस्तक की प्रथम प्रति श्री समीर लाल जी की पुत्र वधु को भेंट की.
शुभ हो प्रणय पर्व हम सब मिल कर नूतन हर्ष संजोयें
अभिनन्दन के भाव आज हम भेंट कर रहे हैं स्वीकारो
भावी जीवन के सपनों की मधुपूरित खुशियों से
विविध रूप में र~मगा तुम्हारा वर्त्तमान सजाता हो
साथ ही अनूप और रजनी भार्गव, विकास और शैलजा सक्सेना, मानोशी छटर्जी और राकेश जी की ओर से राकेश जी ने वर वधु के लिए मंगलकामना करते हुए गीत प्रेषित किया:
सदा रहे मंगलमय जीवन
शुभ आशीष तुम्हें देते हैं
तुम्हें मुबारक गुल औ’ कलियाँ
रस भीगे दिन रस की रतियाँ
रसिक सुबह हो, शाम सुगन्धी
गगन बिखेरे रस मकरन्दी
जिसमें सदा खिलें नवकलियाँ
ऐसा चमन तुम्हें देते हैं
जो छू लें अन्त:स्तल तल को
घुटनलिप्त नभ के मंडल को
नयनों के बेसुध काजल को
हियरा के उड़ते आँचल को
फिर उच्चार करें गीता सा
ऐसे अधर तुम्हें देते हैं
जो बिखरे तिनकों को जोड़ें
मांझी को साहिल तक छोड़ें
अन्तर्मन को दिशा दिखायें
पथ में नूतन सरगम गायें
जो उड़ छू लें मंज़िल का सर
ऐसे पंख तुम्हें देते हैं
जो सपनों की अँगनाई में
मन की गुंजित शहनाई में
उषा की मॄदु अँगड़ाई में
घुल जाते हैं परछाईं में
इन्द्रधनुष नित बन कर सँवरें
ऐसे पंख तुम्हें देते हैं.
सदा रहे मंगलमय जीवन
शुभ आशीष तुम्हें देते हैं.
समीर लाल सम्मानित:
इसी अवसर पर वाशिंगटन हिन्दी समिति यू एस ए द्वारा हिन्दी भाषा एवं हिन्दी चिट्ठाकारी की विशिष्ट सेवा के लिए श्री समीर लाल को ‘साहित्य गौरव’ के सम्मान से विभूषित किया गया एवं शिवना प्रकाशन, सिहोर के द्वारा से ’शिवना सारस्वत सम्मान’ से अलंकृत किया गया. श्री अनूप भार्गव जी ने इस मौके पर दोनों सम्मान पत्रों का अंग्रेजी मे अनुवाद कर उन कनेडियन मेहमानों को सुनाया जिन्हें हिन्दी नहीं आती थी.
श्री नारायण कासट जी, श्री रमेश हटीला और श्री पंकज सुबीर को इस मौके पर विशेष रुप से याद किया गया जिनके अथक प्रयास से यह ’बिखरे मोती’ का संकलन मूर्त रुप ले पाया.
साहित्य गौरव
शिवना सारस्वत सम्मान
इसके बाद श्री समीर लाल जी द्वारा सभी के आभार प्रदर्शन एवं काव्यपाठ के बाद विमोचन का कार्यक्रम समाप्त हुआ ।
श्री समीर लाल जी द्वारा पढ़ी गई रचना:
चाँद गर रुसवा हो जाये तो फिर क्या होगा
रात थक कर सो जाये तो फिर क्या होगा.
यूँ मैं लबों पर, मुस्कान लिए फिरता हूँ
आँख ही मेरी रो जाये तो फिर क्या होगा.
यों तो मिल कर रहता हूँ सबके साथ में
नफरत अगर कोई बो जाये तो फिर क्या होगा.
कहने मैं निकला हूँ हाल ए दिल अपना
अल्फाज़ कहीं खो जाये तो फिर क्या होगा.
किस्मत की लकीरें हैं हाथों में जो अपने
आंसू उन्हें धो जाये तो फिर क्या होगा.
बहुत अरमां से बनाया था आशियां अपना
बंट टुकड़े में दो जाये तो फिर क्या होगा.
ये उड़ के चला तो है घर जाने को ’समीर;
हवा ये पश्चिम को जाये तो फिर क्या होगा.
4 comments:
बहुत आभार मान्यवर. :) सब आपका स्नेह है.
स्वागत, बधाई और शुभकामनाएँ!
आपको और समीर भाई को बहुत बहुत शुभकामनाएं |
nice.narayan narayan
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