कविता प्रेमियों के लिए एक रत्नकोश : शिखा वार्ष्णेय
संगीता स्वरुप की कवितायेँ कल्पना ,भावनाओं ,व्यावहारिकता और यथार्थ का अनूठा संगम हैं .जहाँ "पीले फूल ,"छुअन" सरीखी कवितायेँ खूबसूरत भावनाओं की परकाष्ठा को छूती हैं वहीँ" सुर्खी एक दिन की "और "वृद्ध आश्रम" जैसी कवितायेँ यथार्थ के कठोर धरातल से परिचय कराती हैं.
जहाँ एक ओर "सच बताना गांधारी" ,और" कृष्ण आओ तुम एक बार" व्यावहारिकता पर चतुराई से संतुलित बहस करती प्रतीत होती हैं वहीं "स्वयं सिद्धा बन जाओ" और "है चेतावनी" समाज की कुरीतियों को तीखी चेतावनी देती हैं.
सधे हुए खूबसूरत शब्दों में पिरोई हुई ये कव्यशाला निसंदेह कविता प्रेमियों के लिए एक रत्नकोश है, जो हिंदी कविताओं को आम नागरिक के ह्रदय की तह तक पहुंचाता है.
शिखा वार्ष्णेय
मास्टर ऑफ जर्नलिज्म. मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी
स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक लन्दन
हिंदी काव्य संसार को ये कविताएं समृद्ध करेंगी : मनोज कुमार
कहा जाता है कि कुछ लोगों में, खासकर महिलाओं में छठी इंद्रिय भी होती है। छहों इंद्रियों को निरूपित करती, जन जीवन से रूबरू होती इस काव्य संग्रह में संगीता स्वरूप जी की छह दर्जन कविताएं अपनी सहज संप्रेषणीयता और ग्राह्यता से पाठकों की भावनाओं का दर्पण बन गई है। हम इसमें अपने जीवन के रूप स्पष्ट देख पाते हैं।
इन कविताओं से मानवीय संबंधों की गरिमा और मानवमूल्यों की परम्परा को जहां एक ओर जीवित रखा गया है वहीं दूसरी ओर जो कुछ सत्व, सार्थकता और तीखी धार है वह जीवन की जमीन से उठी इसी परंपरा की देन है।
इनके व्यक्तित्व में जहां तीखी धार सा पैनापन है वहीं दूसरी तरफ रूई के फाहे जैसी नर्मी। इन दोनों को जोड़ती सरकडे सा लचीला मन है इनका! इसीलिए परम सहजता से वह अपना सारा संतुलन बनाए रखती है, जो न सिर्फ उनके जीवन में दिखती है बल्कि रचनाओं में भी इनकी सहज अभिव्यक्ति मन को भाती है। जिंदगी में जो भी अनुभव किया वह इनकी रचनाओं में प्रकट होता है। कोई मुखौटा लगाकर ये अपनी बात नहीं रखती। समाज के प्रति दायित्वबोध रचनाओं में स्पष्ट है। यह भी स्पष्ट है कि नैतिकता और ईमानदारी इनके हथियार हैं।
इस संग्रह की कविताओं में कहीं समकालीन विसंगतियों पर उन्होंने दो-टूक राय रखी है, तो कहीं उनमें एकांत और संवेदशील मन का संवाद है, और कहीं लोगों के दुख-दर्द पर मलहम लगाते स्वर। अनुभव और कल्पना का ऐसा मिश्रण तैयार किया है जो हमारे मन-आंगन को भिगो जाता है। वहीं दूसरी ओर जीवन के कटु यथार्थ को अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों की नई योजना भी गढ़ी है इन्होंने। इन कविताओं में जीवन के प्रगाढ़ रंगो की अभिव्यंजना है। अपने आसपास के गहन तिमिर को मोमबती की तरह आलोकित करते हैं कविताओं के शब्द।
इस संकलन की कविताएं पिछले एक वर्ष में अंतरजाल पर प्रकाशित होती रही है। मैं इनके सृजन का साक्षी भी रहा हूँ और पाठक भी! अंतरजाल पर प्रकाशित हो कर काव्य-रसिकों के दरवाजों पर दस्तक दे चुकी ये कविताएं इनकी काव्य-कला साधना की परिपक्वता का इशारा कर चुकी है। इस काव्य संग्रह का प्रकाशन मैं एक सुखद घटना मानता हूँ। हिंदी काव्य संसार को ये कविताएं समृद्ध करेंगी ऐसा मेरा विश्वास है और काव्य-प्रेमियों के बीच अपनी स्पष्ट पहचान बनाएंगी।
मनोज कुमार
निदेशक (रक्षा मंत्रालय के आयुध निर्माण बोर्ड, कोलकाता)
2 comments:
hardik shubkamnaye
regards
शुक्रिया ...
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